भारत में अंग्रेजी की समस्या | Bharat mein Angreji ki Samasya
- श्रेणी: बाल पुस्तकें / Children
- लेखक: आर० के० अग्निहोत्री - R. K. AGNIHOTRI ए० एल० खन्ना - A. L. Khanna पुस्तक समूह - Pustak Samuh बरुण कुमार मिश्र - BARUN KUMAR MISHRA
- पृष्ठ : 171
- साइज: 0 MB
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दो शब्द :
यह पाठ "भारत में अंग्रेज़ी की समस्या" पर केंद्रित है, जिसमें आर.के. अग्निहोत्री और ए.एल. खन्ना ने अंग्रेज़ी भाषा की स्थिति, उसकी भूमिका और कार्यों का विश्लेषण किया है। पुस्तक की प्रस्तावना में बताया गया है कि यह अध्ययन 1995 में ब्रिटिश काउंसिल के लिए की गई एक रिपोर्ट पर आधारित है, जिसमें 1993-94 में एकत्रित आँकड़ों का उपयोग किया गया है। अध्ययन का मुख्य उद्देश्य भारत में अंग्रेज़ी के प्रति दृष्टिकोण, उसकी सामाजिक और व्यक्तिगत पहलुओं का पता लगाना है। यह स्पष्ट होता है कि उच्च शिक्षा और सामाजिक गतिशीलता के लिए अंग्रेज़ी महत्वपूर्ण है, लेकिन सामान्य जीवन में इसकी भूमिका सीमित है। अधिकांश लोग मानते हैं कि बच्चों के लिए उनकी मातृभाषा सबसे उपयुक्त है। इसके बावजूद, अंग्रेज़ी में दक्षता हासिल करने की इच्छा बनी रहती है। पुस्तक में भाषा और सत्ता के संबंधों पर भी चर्चा की गई है। यह बताया गया है कि भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं है, बल्कि यह पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। मानकीकरण की अवधारणा पर भी विचार किया गया है, जिसमें एक विशेष प्रकार की भाषा को मानक माना जाता है, जबकि अन्य बोलियों को हाशिए पर डाल दिया जाता है। अध्ययन से यह निष्कर्ष निकाला गया है कि अंग्रेज़ी का स्थान और उसके द्वारा उत्पन्न असमानताएँ सामाजिक और राजनीतिक कारकों से प्रभावित हैं। लेखक यह सुझाव देते हैं कि भाषा के माध्यम से विद्रोही विचारों का विकास संभव है और यह महत्वपूर्ण है कि अंग्रेज़ी को आलोचनात्मक दृष्टिकोण से समझा जाए। अंत में, यह पुस्तक भारतीय भाषाओं और संस्कृतियों के संदर्भ में अंग्रेज़ी की भूमिका को समझने का प्रयास करती है, और यह दर्शाती है कि भारतीय समाज में बहुभाषिता का महत्व है।
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