गुनाह के पहले | Gunah Ke Pehle

By: गुलशन नंदा - Gulshan Nanda
गुनाह के पहले | Gunah Ke Pehle by


दो शब्द :

बंबई एक्सप्रेस रात के अंधकार को चीरते हुए तेजी से चल रही थी। सुशील और उसका छोटा भाई नवीन अपने बड़े भाई के पास भोपाल जा रहे थे। सुशील कालेज की छात्रा थी और नवीन तीसरी कक्षा का विद्यार्थी। यात्रा के दौरान नवीन ने सूप पीते समय कपड़ों पर सूप गिरा दिया, जिससे सुशील हंस पड़ी और उसे साफ करने लगी। तभी एक युवक उनकी सीट के पास आकर बैठने की अनुमति चाहता है। सुशील उसकी उपस्थिति से असहज थी और उसने उसे दूसरी सीट की ओर इशारा किया। गाड़ी कुछ समय बाद एक स्टेशन पर रुकी, और जब वे अपने डिब्बे में लौटे, तो देखा कि उनकी सहयात्री एक अमरीकी महिला रास्ते में उतर गई। अब वे अकेले रह गए थे। सुशील ने डिब्बे के दरवाजों को बंद कर दिया, और गाड़ी चलने लगी। सुशील ने पत्रिका पढ़ना शुरू किया, लेकिन नवीन डर रहा था और सुशील के पास चला आया। बातचीत के दौरान, नवीन ने पूछ लिया कि यदि वे सो गए और गाड़ी भोपाल नहीं रुकी, तो क्या होगा। सुशील ने कहा कि गार्ड उन्हें जगा देगा। इस पर नवीन ने चिंता जताई कि अगर गार्ड भी सो गया तो क्या होगा। सुशील ने उसे आश्वस्त किया कि उनके जीजाजी उन्हें ढूंढ लेंगे। जब सुशील ने बताया कि उन्हें भोपाल में एक लड़के से मिलवाने के लिए बुलाया गया है, तो नवीन खुशी से हंस पड़ा। लेकिन अचानक, नवीन की चीख सुनकर सुशील चौंकी। वह डर गई क्योंकि डाइनिंग कार वाला व्यक्ति उनके पास आकर खड़ा था। कहानी में इस डर और अनिश्चितता के बीच, सुशील अपने भविष्य के लिए आशंकित थी और सोचने लगी कि वह लड़का कैसा होगा।


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