दो शब्द :

महाकवि भारवि का महाकाव्य "किरातार्जुनीयम्" संस्कृत काव्य साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह ग्रंथ न केवल काव्य की शैली और रस का उत्कृष्ट उदाहरण है, बल्कि यह काव्य के विकास में भी एक महत्वपूर्ण मोड़ का प्रतिनिधित्व करता है। लेखक ने इस व्याख्या को स्वर्गीय श्री जमुना प्रसाद भट्ट के आग्रह पर 1970 में लिखा था और इसे कई संस्करणों में प्रकाशित किया गया है। भारवि का काव्य जीवन के आदर्शों की व्याख्या करता है और इसमें नायक-नायिका के प्रेम चित्रण के साथ-साथ कई अन्य भावनाओं को भी दर्शाया गया है। यह ग्रंथ काव्य की व्याकरणात्मक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें संस्कृत काव्य की जटिलताओं और सौंदर्य को उजागर किया गया है। भारवि का समय ईसा के छठे शताब्दी के आसपास माना जाता है। उन्होंने काव्य में भावपक्ष की तुलना में भाषा और कलापक्ष को अधिक महत्व दिया। उनके काव्य में चित्रकाव्य का प्रचलन हुआ और कविता को केवल भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए नहीं, बल्कि चमत्कारिक रूप से प्रस्तुत करने के लिए लिखा जाने लगा। इसके परिणामस्वरूप एक नई काव्यशैली का विकास हुआ जिसमें अलंकारिकता और जटिलता दोनों का समावेश था। महाकवि भारवि के जीवन और उनके काव्य के बारे में अधिक जानकारी हमें विभिन्न प्रमाणों और उद्धरणों के माध्यम से मिलती है। उनके काव्य में भावनात्मक गहराई, चित्रात्मकता और शिल्प की उत्कृष्टता है, जो उन्हें अन्य कवियों से अलग करती है। इस प्रकार, "किरातार्जुनीयम्" और भारवि का काव्य साहित्य के विकास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है।


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