खून का टीका | Khoon Ka Teeka by


दो शब्द :

इस पाठ में राणा हम्मीर और उनके सहयोगियों की एक महत्वपूर्ण बैठक का वर्णन किया गया है, जिसमें चित्तौड़ की रक्षा के लिए बलिदान की आवश्यकता पर चर्चा हो रही है। सामंतों की राय है कि तुगलक और जेसा को मृत्यु दंड दिया जाए, लेकिन राणा हम्मीर इसका विरोध करते हैं। वे कहते हैं कि राजपूत धर्मयुद्ध करते हैं और वे शत्रुओं को भी क्षमा कर सकते हैं। हम्मीर का मानना है कि चित्तौड़ की स्थिति युद्ध के कारण कमजोर हो गई है और तुगलक को मृत्यु दंड देने के बजाय उसे प्राण दंड दिया जाना चाहिए, जिससे वे चित्तौड़ का पुनर्निर्माण कर सकें। बैठक में माँ वरवड़ी की उपस्थिति में हम्मीर ने अपनी बात रखी। माँ वरवड़ी ने कहा कि देश को राजाओं की नहीं, बलिदान की आवश्यकता है। लाखा नामक एक योद्धा भी देवी के स्वप्न के आधार पर बलिदान की बात करते हैं, यह कहते हुए कि जब तक राजमुकुटधारी राजकुमार युद्ध में नहीं जाएंगे, तब तक मेवाड़ संकट में रहेगा। लाखा जी के पुत्र भी इस बलिदान की बात को स्वीकार करते हैं, लेकिन दरबार में मौन छा जाता है जब बलिदान की बात आती है। इस पाठ में वीरता, बलिदान और धर्म की महत्वपूर्ण बातें उजागर होती हैं, जो राजपूतों की मानसिकता और उनकी परंपराओं को दर्शाती हैं। यह कहानी चित्तौड़ के सम्मान को बचाने के लिए सामंतों और योद्धाओं की आपसी विचार-विमर्श और बलिदान की आवश्यकता पर केंद्रित है।


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