विवेकानन्द संचयन( भाग -१) | Vivekanand Sanchayan (part-1)

By: स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand


दो शब्द :

स्वामी विवेकानन्द एक महान भारतीय संत और विचारक थे, जिनका जन्म 1863 में हुआ और 1902 में उनका निधन हुआ। वे भारतीय संस्कृति और वेदांत के अद्वितीय प्रवक्ता थे। विवेकानन्द ने अपने गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस के विचारों को अपनाया और उन्हें पूरे विश्व में फैलाने का कार्य किया। उनका मानना था कि मानव को बलवान बनना चाहिए और निष्क्रियता के बजाय कर्म करना चाहिए। उनकी शारीरिक और मानसिक शक्ति ने उन्हें एक प्रभावशाली व्यक्तित्व बनाया। 1893 में शिकागो के धर्म सम्मेलन में उनके उद्बोधन ने उन्हें विश्व स्तर पर प्रसिद्ध किया। उन्होंने भारतीय संस्कृति और वेदांत के सिद्धांतों को पश्चिमी दुनिया के सामने रखा। इसके बाद, उन्होंने भारत लौटकर देश के विभिन्न हिस्सों में वेदांत, कर्म, भक्ति और योग का संदेश फैलाया। स्वामी विवेकानन्द ने 1897 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य आध्यात्मिकता और मानव सेवा को बढ़ावा देना था। उन्होंने पाश्चात्य संस्कृति की अंधी नकल के खिलाफ आवाज उठाई और भारतीय समाज में व्याप्त रूढ़िवादिता और जातिवाद के खिलाफ भी संघर्ष किया। विवेकानन्द का जीवन संघर्ष और सेवा से भरा रहा। उन्होंने अपने विचारों और उपदेशों के माध्यम से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को भी प्रेरणा दी। उनका जन्म दिवस 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनके व्याख्यान, प्रवचन और लेखन में ज्ञान और शिक्षा का भंडार है, जो आज भी मानवता के लिए प्रेरणादायक है। स्वामी विवेकानन्द का संदेश आज के वैज्ञानिक युग में भी प्रासंगिक है, क्योंकि उन्होंने आत्मा, धर्म और मानवता की गहरी समझ प्रदान की है।


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