मूत्र रोग चिकित्सा | Mutra Rog Chikitsa
- श्रेणी: Ayurveda | आयुर्वेद Health and Wellness | स्वास्थ्य रोग / disease
- लेखक: गिरिधारीलाल शर्मा - Giridharilal Sharma
- पृष्ठ : 370
- साइज: 33 MB
- वर्ष: 1959
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दो शब्द :
इस पाठ में "मूत्र रोग चिकित्सा" की जानकारी दी गई है, जिसमें मूत्रवह संस्थान और उससे संबंधित रोगों के लक्षण, निदान, और उपचार के तरीके पर चर्चा की गई है। लेखक गिरिधारी लाल मिश्र ने इस विषय पर विशेष रूप से ध्यान दिया है क्योंकि हाल के समय में खान-पान और व्यावहारिक कारणों से लोग मूत्रवह रोगों से प्रभावित हो रहे हैं। लेखक ने यह भी बताया है कि कई लोग शर्म के कारण चिकित्सक के पास नहीं जाते, जिससे उनकी बीमारियाँ बढ़ जाती हैं। इस स्थिति के कारण आयुर्वेद को उपहास का पात्र बनना पड़ता है। मिश्र ने अपने अनुभव के आधार पर यह पुस्तक लिखने का निर्णय लिया, ताकि साधारण चिकित्सकों के लिए उपयोगी सामग्री उपलब्ध हो सके। पुस्तक में मूत्र रोगों के साथ-साथ अन्य रोगों जैसे प्रमेह, मधुमेह, और पौरुष ग्रंथि रोगों को भी शामिल किया गया है, क्योंकि इनका मूत्र रोगों से संबंध होता है। लेखक ने स्पष्ट किया है कि उनका लक्ष्य साधारण चिकित्सकों को सरल और प्रासंगिक चिकित्सा जानकारी प्रदान करना है। इसके अतिरिक्त, पुस्तक के प्रकाशन में सहयोग देने वालों का धन्यवाद किया गया है, और यह बताया गया है कि इसमें कई चित्र भी शामिल किए गए हैं। लेखक ने आयुर्वेद के प्रति अपनी रुचि और अनुभव को साझा किया है और आशा व्यक्त की है कि पाठक इस पुस्तक को पढ़कर आयुर्वेद की चिकित्सा पद्धतियों की ओर अग्रसर होंगे। इस प्रकार, यह पाठ आयुर्वेद के माध्यम से मूत्र रोगों की चिकित्सा के महत्व को उजागर करता है और पाठकों को आयुर्वेद की ओर आकर्षित करने का प्रयास करता है।
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