जैन वास्तु विद्या | Jain Vastu- vidhya
- श्रेणी: ज्योतिष / Astrology धार्मिक / Religious
- लेखक: गोपीलाल, अमर - Gopilal, Amar सुदीप जैन - Sudeep Jain
- पृष्ठ : 130
- साइज: 3 MB
- वर्ष: 1978
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दो शब्द :
यह पाठ "जैन वास्तु-विद्या" के महत्व और उसकी विशेषताओं पर केंद्रित है। इसमें जैन वास्तु-विद्या के ज्ञान को समृद्ध करने के लिए विभिन्न विद्वानों द्वारा किए गए कार्यों का उल्लेख किया गया है। पाठ में यह बताया गया है कि वास्तु-विद्या केवल निर्माण की विद्या नहीं है, बल्कि यह प्रकृति के अनुकूल, सस्ती, सुंदर और मजबूत संरचनाओं के निर्माण की प्रक्रिया है। लेखक, डॉ. गोपीलाल "अमर", ने यह पुस्तक उन लोगों के लिए लिखी है जो जैन दर्शन के संदर्भ में वास्तु-विद्या को समझना चाहते हैं। उन्होंने यह सुनिश्चित किया है कि पुस्तक सामान्य पाठकों के लिए भी समझने योग्य हो। इसमें जैन वास्तु-विद्या के विभिन्न पहलुओं जैसे निर्माण के सिद्धांत, पर्यावरण की शुद्धता, भूमि का चयन, दिशा का महत्व, और निर्माण कार्य में ध्यान रखने योग्य बातें शामिल हैं। संपादक, डॉ. सुदीप जैन, ने पुस्तक को आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से संपादित किया है, जिससे यह और भी प्रासंगिक हो गई है। पाठ में यह भी उल्लेखित है कि वास्तु-विद्या के नियम और परंपराएं सत् और अहिंसक विचारों का पालन करती हैं, जिससे मानवता की प्रगति संभव हो सके। कुल मिलाकर, यह पुस्तक जैन वास्तु-विद्या के सिद्धांतों को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करती है और इसे आधुनिक संदर्भ में समझने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देती है।
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