रसरत्न समुच्य | Rasaratna Samucchaya

By: गंगाविष्णु श्रीकृष्णदास - Gangavishnu Shreekrishndas
रसरत्न समुच्य | Rasaratna Samucchaya by


दो शब्द :

इस पाठ में आयुर्वेद के महत्व और उसके उत्थान की आवश्यकता पर चर्चा की गई है। लेखक ने बताया है कि भारत, जो ज्ञान और चिकित्सा का केंद्र रहा है, आज विदेशी शासन के कारण अपने प्राचीन गौरव को खो चुका है। लेखक का मानना है कि आयुर्वेद को पुनर्जीवित करने की अत्यधिक आवश्यकता है, क्योंकि यह न केवल भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है, बल्कि यह वैश्विक स्तर पर भी महत्वपूर्ण चिकित्सा प्रणाली साबित हो सकता है। पाठ में यह भी उल्लेख किया गया है कि आयुर्वेद की प्राचीन ग्रंथों में दी गई जानकारी और चिकित्सा पद्धतियों की पुनर्समीक्षा की जानी चाहिए। लेखक ने सुझाव दिया है कि आयुर्वेदिक शिक्षा संस्थानों की स्थापना की जाए, ताकि लोग आयुर्वेद के ज्ञान से लाभान्वित हो सकें। इसके अलावा, देशी औषधियों के उपयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। लेखक ने यह भी स्पष्ट किया है कि आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों के साथ आयुर्वेद का समन्वय आवश्यक है, ताकि रोगों का प्रभावी उपचार किया जा सके। उन्होंने आयुर्वेद के ग्रंथों, जैसे चरक संहिता और सुश्रुत संहिता की महत्ता को भी रेखांकित किया है, जो कि भारतीय चिकित्सा का आधार हैं। अंत में, लेखक ने सभी लोगों से आयुर्वेद की धरोहर को सहेजने और उसे पुनर्जीवित करने की अपील की है, ताकि भारत फिर से चिकित्सा के क्षेत्र में अपनी पहचान बना सके।


Please share your views, complaints, requests, or suggestions in the comment box below.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *