आदर्श हिंदी संस्कृत कोष | Adarsh Hindi-Sanskrit Kosh

By: रामसरूप शास्त्री - Ramsaroop Shastri


दो शब्द :

यह पाठ एक हिंदी-संस्कृत कोश की प्रस्तावना और उद्देश्य के बारे में है। प्रोफेसर रामसरूप शास्त्री ने इस कोश को तैयार करने के पीछे की प्रेरणा और महत्व को स्पष्ट किया है। उन्होंने बताया कि संस्कृत भाषा का साहित्य अत्यंत समृद्ध है और यह भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। हालांकि, समय के साथ संस्कृत का प्रयोग कम होता गया, और आम लोग इसकी विकृत रूपों का उपयोग करने लगे, जैसे प्राकृत और अपभ्रंश। शास्त्री ने यह भी उल्लेख किया कि बाजार में एक अच्छा हिंदी-संस्कृत कोश नहीं था, जिससे संस्कृत अध्ययन करने वाले छात्रों और अध्यापकों को मदद मिल सके। इसलिए, उन्होंने 1542 ई. में इस कोश का निर्माण शुरू किया और लगभग चार वर्षों की मेहनत से इसे पूरा किया। उन्होंने कोश में विदेशी शब्दों को भी शामिल किया है, ताकि हिंदी भाषी लोग संस्कृत सीखने में आसानी महसूस करें। कोश में 30,000 से अधिक मूल शब्द हैं, जिनमें से कुछ पारिभाषिक और विदेशी शब्द हैं। कोश में शब्दों का गठन वर्णमाला के अनुसार किया गया है और शब्दों के लिंग, अर्थ और व्युत्पत्ति का भी ध्यान रखा गया है। इसके अलावा, यह भी बताया गया है कि शब्दों के समानार्थक शब्दों को एक ही स्थान पर नहीं रखा गया है ताकि कोई भ्रम न हो। शास्त्री ने इस कोश की उपयोगिता को रेखांकित करते हुए छात्रों और अध्यापकों को सलाह दी है कि वे इसे पढ़ें और इसके माध्यम से संस्कृत का अध्ययन करें। इस कोश का उद्देश्य संस्कृत भाषा को समझने और सिखाने में सहायक होना है, जिससे लोग इस प्राचीन भाषा के प्रति जागरूक हो सकें।


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