स्वप्नवासवदत्तम् | Swapnavasavadattam
- श्रेणी: Cultural Studies | सभ्यता और संस्कृति भारत / India
- लेखक: बद्रीनाथ मालवीय - Badrinath Malviy
- पृष्ठ : 335
- साइज: 5 MB
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दो शब्द :
इस पाठ में नाटक (रूपक) की उत्पत्ति, उसकी परिभाषा, और नाट्यशास्त्र की प्राचीनता पर चर्चा की गई है। नाटक को पञ्चम वेद माना गया है और यह लोक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। नाट्यशास्त्र का इतिहास बहुत पुराना है, जिसमें कई प्राचीन ग्रंथों और विचारों का उल्लेख किया गया है। भरतमुनि ने नाट्य का विस्तृत विवरण दिया है, जिसमें संवाद, संगीत और अभिनय के तत्व शामिल हैं। नाटक की परिभाषा देते हुए कहा गया है कि यह किसी कहानी का दृश्य रूपांतरण है, जिसमें पात्र विभिन्न चरित्रों के रूप में दिखाई देते हैं। पाठ में यह भी बताया गया है कि नाटक की उत्पत्ति विभिन्न संस्कृतियों में अलग-अलग तरीकों से हुई है। भारतीय संदर्भ में कई पुराणों और महाकाव्यों में नाटकों का उल्लेख मिलता है। इसके अलावा, नाटक को सुखान्त और दुःखान्त में विभाजित किया गया है। भारतीय नाटकों की परंपरा मुख्यतः सुखान्त होती है, जबकि पश्चिमी नाटकों में दुःखान्त को अधिक महत्व दिया जाता है। इस प्रकार, पाठ नाटक की कला, उसके विकास, परिभाषा और उसकी सामाजिक भूमिका को स्पष्ट करता है।
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