पृथ्वी की अद्भुत रोग नाशक शक्ति | Prithvi Ki Adbhut Rog Nashak Shakti

By: युगलकिशोर चौधरी - yuglakishor Chaudhary


दो शब्द :

इस पाठ में प्राकृतिक चिकित्सा की महत्ता पर जोर दिया गया है। लेखक का कहना है कि मनुष्य को अपनी प्राकृतिक स्थिति में, यानी पृथ्वी पर रहना चाहिए, क्योंकि इसी से उसकी स्वास्थ्य और दीर्घकालिक जीवनशक्ति का विकास होता है। उन्होंने बताया है कि जैसे मछली जल में, पक्षी हवा में और जानवर पृथ्वी पर रहकर स्वस्थ रहते हैं, वैसे ही मनुष्य को भी पृथ्वी पर रहना चाहिए। लेखक ने यह भी उल्लेख किया है कि आधुनिक सभ्यता ने मनुष्य को पृथ्वी से दूर कर दिया है। पलंग, कुर्सी और जूते जैसी सुविधाओं का उपयोग करने से मनुष्य ने अपनी प्राकृतिक शक्ति को खो दिया है, जिससे लोग विभिन्न बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। पहले के लोग हमेशा पृथ्वी पर सोते और चलते थे, जिससे वे स्वस्थ और दीर्घजीवी रहते थे। पाठ में यह भी कहा गया है कि पृथ्वी की स्पर्श और संयोग से मनुष्य को अद्भुत स्वास्थ्य लाभ मिलता है। लेखक ने यह सुझाव दिया है कि लोग नंगे पांव चलें, पृथ्वी पर बैठें और बिना बिछौने के सोएं, ताकि वे अपनी खोई हुई शक्ति को पुनः प्राप्त कर सकें। अंत में, लेखक ने आशा व्यक्त की है कि यह पुस्तक समाज को प्राकृतिक चिकित्सा की ओर प्रेरित करेगी और लोगों को उनके स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करेगी, ताकि वे प्राकृतिक नियमों का पालन करके स्वस्थ जीवन जी सकें।


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