राष्ट्र - भाषा - हिंदी | Rashtra-Bhasha- Hindi

By: प्रेमचन्द सुमन - Premchand suman
राष्ट्र - भाषा - हिंदी | Rashtra-Bhasha- Hindi by


दो शब्द :

इस पाठ में हिंदी भाषा और उसकी राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकृति के संदर्भ में विचार प्रस्तुत किए गए हैं। स्वतंत्रता के बाद, राष्ट्रभाषा और राष्ट्रलिपि के मुद्दे महत्वपूर्ण बन गए हैं। विभिन्न नेताओं, साहित्यकारों और भाषा-शास्त्रियों के विचारों का संकलन इस पुस्तक में किया गया है, जिसमें उन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार करने की बात की है। लेखक ने यह भी बताया है कि राष्ट्रलिपि के विषय में विचारों का मंथन भविष्य में एक अन्य पुस्तक में किया जाएगा। लेखक ने इस पुस्तक को राजनीतिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से समृद्ध बनाने का प्रयास किया है। इसमें विभिन्न व्यक्तित्वों के विचारों का समावेश है, जो इस बात को दर्शाते हैं कि हिंदी भाषा को एक मान्यता देने की दिशा में समाज में क्या सोच चल रही है। इसके अलावा, पाठ में गांधी जी और पुरुषोत्तम दास टंडन के बीच पत्र-व्यवहार का उल्लेख है, जिसमें वे हिंदी और उर्दू की भाषाई दृष्टिकोणों पर चर्चा करते हैं। गांधी जी ने हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार करने की बात की है, जबकि टंडन ने उनकी विचारधारा की पुष्टि करते हुए हिंदी और उर्दू के समन्वय की आवश्यकता पर जोर दिया है। इस चर्चा के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि उस समय के प्रमुख विचारक भाषा के मुद्दे पर कितने गंभीरता से विचार कर रहे थे। कुल मिलाकर, यह पाठ हिंदी भाषा के राष्ट्रभाषा के रूप में स्थान और उसके विकास की दिशा में उठाए गए कदमों का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है, जो उस समय की राजनीतिक और सांस्कृतिक धारा को भी दर्शाता है।


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