श्री गुरु ग्रन्थ साहिब | Sri Guru Granth Sahib

By: मनमोहन सहगल - Manmohan Sahagal


दो शब्द :

इस पाठ में प्रस्तुत विषय मानवता की भाषाई विविधता और उसके ज्ञान के संदर्भ में है। यह बताता है कि कैसे विभिन्न भाषाएं और लिपियाँ एक-दूसरे से जुड़ी हैं और कैसे उनसे प्राप्त ज्ञान को साझा करना आवश्यक है। लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि विभिन्न भाषाओं और लिपियों के बीच भेदभाव के बजाय, हमें एकता और भाईचारे की भावना को बढ़ावा देना चाहिए। भारत में कई भाषाएं और लिपियाँ प्रचलित हैं, और ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति के बावजूद, संचार में बाधाएं उत्पन्न होती हैं। इसलिए, हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में बढ़ावा देकर, विभिन्न भाषाओं के दिव्य वाङ्मय को सुलभ बनाना आवश्यक है। लेख में विशेष रूप से "श्री गुरु ग्रन्थ साहिब" के हिंदी अनुवाद और नागरी लिप्यन्तरण की महत्वता पर जोर दिया गया है। इसे आम जनता के लिए सुलभ बनाने का प्रयास किया गया है, ताकि वे इसकी दिव्य वाणियों का लाभ उठा सकें। अनुवादक डॉ. मनमोहन सहगल द्वारा किए गए प्रयासों की प्रशंसा की गई है, जिससे यह ग्रन्थ हिंदी भाषी जनता के लिए भी उपलब्ध हो सका है। इसमें यह भी बताया गया है कि गुरमुखी और हिंदी लिपि के बीच समानताएं हैं, और कैसे यह ग्रन्थ केवल सिख समुदाय के लिए नहीं, बल्कि समस्त मानवता के लिए है। लेखक का कहना है कि यह ग्रन्थ सामाजिक और धार्मिक आडम्बरों से मुक्त है और मानवता के कल्याण के लिए एक प्रेरणा स्रोत है। अंत में, पाठ में यह संकेत दिया गया है कि विभिन्न भाषाओं और लिपियों के ज्ञान को एकत्रित करना और उसे साझा करना एक आवश्यक कार्य है, जो मानवता के लिए एकता और सद्भावना का मार्ग प्रशस्त करेगा।


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