दो शब्द :

महात्मा गांधी द्वारा लिखित "हिन्द-स्वराज्य" एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और सामाजिक ग्रंथ है जिसमें उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के संदर्भ में अपने विचार प्रस्तुत किए हैं। इस पुस्तक में गांधीजी ने स्वराज्य की परिभाषा, उसके महत्व और उसकी प्राप्ति के लिए आवश्यक साधनों पर चर्चा की है। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और उसके नेताओं की भूमिका पर भी विचार किया है, साथ ही ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों के असंतोष और विद्रोह की भावना की व्याख्या की है। गांधीजी ने कांग्रेस और उसके पदाधिकारियों की आलोचना करते हुए कहा कि स्वतंत्रता की इस लहर में केवल एक जोश है, लेकिन इसे सही दिशा की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी बताया कि कैसे अतीत के नेता जैसे दादाभाई नौरोजी और गोखले ने भारतीयों में जागरूकता और स्वराज्य की भावना जगाई। उनका मानना था कि बिना उचित समझ और योजना के स्वराज्य की खोज करना व्यर्थ है। गांधीजी ने स्पष्ट किया कि स्वराज्य केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं है, बल्कि यह आत्म-निर्भरता, आत्म-बलिदान और सत्याग्रह के सिद्धांतों पर आधारित है। उन्होंने यह भी बताया कि अहिंसा का मार्ग अपनाना चाहिए, क्योंकि यह सच्ची सभ्यता की निशानी है। उन्होंने भारतीयों को अपने भीतर की शक्ति को पहचानने और उसे विकसित करने के लिए प्रेरित किया। कुल मिलाकर, "हिन्द-स्वराज्य" एक गहन विचार-प्रवेश है जो न केवल स्वतंत्रता की आवश्यकता को रेखांकित करता है, बल्कि भारतीय समाज को एक नई दिशा देने की कोशिश करता है। गांधीजी ने अपने विचारों को सरलता से प्रस्तुत किया है ताकि आम लोग भी उन्हें समझ सकें और अपने जीवन में लागू कर सकें।


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