सनातन धर्म का यतार्था स्वरुप | Sanatan Dharma Ka Yatharth Swaroop

By: इन्द्राणी पाठक - Indrani Pathak
सनातन धर्म का यतार्था स्वरुप | Sanatan Dharma Ka Yatharth Swaroop by


दो शब्द :

इस पाठ में लेखिका ने सत्य वैदिक सनातन धर्म के वास्तविक स्वरूप को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। उन्होंने अपनी भावनाओं और विचारों को इस पुस्तक के माध्यम से साझा किया है, जो व्यक्तिगत अनुभव और समाज में व्याप्त भ्रम के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुए हैं। लेखिका ने हिंदू समाज के विभिन्न मतों और दृष्टिकोणों की आलोचना की है, यह बताते हुए कि सभी अपनी-अपनी धारणाओं में अडिग हैं और एक-दूसरे को गलत साबित करने में लगे हैं। उन्होंने एक महत्वपूर्ण प्रेरणा का अनुभव किया जब उन्हें श्री १०८ स्वामी जी का धर्मोपदेश सुनने का अवसर मिला, जिससे उन्हें अपने धर्म के प्रति अपनी जिम्मेदारी का बोध हुआ। लेखिका ने महसूस किया कि उन्हें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए, भले ही उनके शब्दों का समाज पर कोई प्रभाव पड़े या न पड़े। पुस्तक का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म का सही परिचय देना है और इस पर लगे धब्बों को हटाना है। वे यह बताना चाहती हैं कि धर्म वास्तव में उज्ज्वल और प्रकाशवान है, न कि केवल एक धब्बाधारी छवि। उन्होंने समाज में व्याप्त अज्ञानता और भ्रांतियों को दूर करने की आवश्यकता को भी रेखांकित किया। लेखिका ने अपने विचारों को स्पष्ट करते हुए कहा है कि वे किसी भी जाति या धर्म के प्रति कोई दुर्भावना नहीं रखतीं, बल्कि जो सत्य उन्हें दिखाई देता है, उसे प्रस्तुत कर रही हैं। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि इस पुस्तक को पढ़ने वाले लोगों की प्रतिक्रियाएँ भिन्न हो सकती हैं, लेकिन उन्होंने अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में संकोच नहीं किया है। इस प्रकार, लेखिका ने अपने अनुभवों और विचारों के माध्यम से सत्य वैदिक सनातन धर्म के सार को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, ताकि समाज में जागरूकता और समझ का विकास हो सके।


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