साहित्य का इतिहास-दर्शन | Sahitya Ka Itihas-Darshan
- श्रेणी: दार्शनिक, तत्त्वज्ञान और नीति | Philosophy साहित्य / Literature
- लेखक: श्री नलिन विलोचन शर्मा - Nalin Vilochan Sharma
- पृष्ठ : 342
- साइज: 17 MB
- वर्ष: 1960
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दो शब्द :
'साहित्य का इतिहास-दर्शन' ग्रंथ में लेखक ने साहित्य के इतिहास के महत्व और उसकी अध्ययन विधि पर ध्यान केंद्रित किया है। लेखक का कहना है कि साहित्येतिहास केवल कुछ विशिष्ट लेखकों और उनकी कृतियों का संग्रह नहीं है, बल्कि यह एक युग विशेष के लेखक समूह की सामूहिक कृतियों का इतिहास है। साहित्येतिहास को समझने में अक्सर यह ध्यान नहीं दिया जाता कि साहित्य का विकास समय के साथ कैसे हुआ और विभिन्न युगों के बीच के अंतराल को कैसे समझा जाए। लेखक ने यह भी बताया है कि भारतीय और पश्चिमी साहित्य का अध्ययन करते समय, विभिन्न कालों के बीच की कड़ी और उनके योगदान को समझना आवश्यक है। जबकि भारतीय साहित्य की परंपरा में निकट अतीत के साहित्य को अधिक महत्व दिया जा रहा है, वहीं प्राचीन संस्कृत साहित्य की उपेक्षा हो रही है। इसके अलावा, पश्चिम में साहित्येतिहास के विकास का वर्णन करते हुए लेखक ने बताया कि कैसे विभिन्न राष्ट्रीय साहित्य एक-दूसरे से प्रभावित होते हैं और उनकी पहचान बनी रहती है। भारतीय साहित्य में भी अब विभिन्न भाषाओं के साहित्यों के संबंध में जागरूकता बढ़ रही है, फिर भी हमें अपने साहित्य का यथार्थ और विस्तृत इतिहास विकसित करने की आवश्यकता है। लेखक ने यह भी स्पष्ट किया है कि साहित्येतिहास का निर्माण तभी संभव है जब हम अतीत की सामग्रियों को पुनर्मूल्यांकित करें और उनकी प्रासंगिकता को समझें। अंत में, लेखक ने यह सिद्धांत प्रस्तुत किया है कि साहित्येतिहास को केवल जीवनी और इतिवृत्तात्मक सूचनाओं पर निर्भर नहीं रहना चाहिए, बल्कि उसे एक आलोचनात्मक दृष्टिकोण से देखना चाहिए, जिससे कि साहित्य का सही और समृद्ध इतिहास लिखा जा सके।
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