हम इक उम्र से वाकिफ है | Hum Ik Umar Se Wakif Hai

By: हरिशंकर परसाई - Harishankar Parsai
हम इक उम्र से वाकिफ है | Hum Ik Umar Se Wakif Hai by


दो शब्द :

इस पाठ में लेखक हरिशंकर परसाई ने अपने जीवन के अनुभवों और विचारों को साझा किया है। वे अपनी आत्मकथा लिखने की प्रक्रिया में अपनी व्यक्तिगत और सामाजिक स्थितियों पर विचार करते हैं। लेखक ने अपने जीवन की कड़वाहट, संघर्ष और अनुभवों को बयान किया है, जिसमें उन्होंने अपने आत्म-गौरव और मूल्य का भी उल्लेख किया है। लेखक ने बताया है कि वे साहित्यिक मूल्य को जानते हैं और समाज में अपने काम की कीमत भी समझते हैं। वे यह भी चिंतन करते हैं कि साहित्य और जीवन के अनुभवों का मूल्य समय के साथ बदलता है। उन्होंने यह भी कहा कि जब वे अपने अनुभवों को लिखते हैं तो उन पर स्वयं का प्रभाव और उनका मूल्यांकन होता है। लेखक ने अपने परिवार के संदर्भ में भी बात की है, जहां उन्होंने अपने पिता की नौकरी और शिक्षण की स्थिति का विवरण दिया है। वे बताते हैं कि उनके पिता की नौकरी और व्यावसायिक जीवन में भ्रष्टाचार और घूसखोरी का भी समावेश था, जो उस समय की सामाजिक व्यवस्था का हिस्सा था। इसके अलावा, लेखक ने अपनी रचनात्मकता और लेखन की प्रक्रिया में आने वाली कठिनाइयों का उल्लेख किया है। उन्होंने स्वीकार किया है कि उन्होंने अपने जीवन में कई बार अविवेक और कायरता दिखाई है, किन्तु वे इसे अपनी रचनाओं में दर्शाने का प्रयास करते हैं। इस पाठ के माध्यम से लेखक ने अपने जीवन के अनुभवों को साझा करते हुए साहित्य, समाज और व्यक्तिगत संघर्षों के बीच के संबंधों पर विचार किया है। उनका दृष्टिकोण यह है कि जीवन में आने वाली विभिन्न परिस्थितियाँ और संघर्ष हमें सीखने और समझने का एक अवसर प्रदान करते हैं, लेकिन हर व्यक्ति की यात्रा और अनुभव अलग होते हैं।


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