विपश्यना-पद्धति | Vipashyana Paddhati

By: अनागारिक मुनीन्द्र - Anagarika Munindra


दो शब्द :

इस पाठ में विपश्यना साधना की प्रक्रिया और उसके महत्व पर चर्चा की गई है। विपश्यना का अर्थ है "देखना" या "अंतरदृष्टि प्राप्त करना", जिसमें साधक अपने मन और शरीर के प्रति जागरूक रहकर अपनी आंतरिक स्थिति का अनुभव करता है। साधना के दौरान साधक अपने विचारों, भावनाओं, और संवेदनाओं पर ध्यान केंद्रित करता है और उन्हें बिना किसी प्रतिक्रियात्मक भाव के केवल देखता है। इस प्रक्रिया में साधक को चार आधारभूत तत्वों का पालन करना होता है: कायानुपश्यना (शरीर की संवेदनाओं पर ध्यान), वेदनानुपश्यना (सुख-दुःख की अनुभूतियों पर ध्यान), चित्तानुपश्यना (मन के विकारों पर जागरूकता), और धर्मोनुपश्यना (चित्त-वृत्तियों की निगरानी)। ये चारों तत्व साधक को मानसिक शांति और अंतर्दृष्टि की प्राप्ति में मदद करते हैं। पाठ में यह भी बताया गया है कि विपश्यना साधना के लिए शील (सदाचार) का पालन करना अनिवार्य है, जिसमें अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, और अपरिग्रह शामिल हैं। साधक को अपने आचार्य के प्रति निष्ठावान रहना चाहिए ताकि वे मार्गदर्शन प्राप्त कर सकें और कठिनाइयों का समाधान कर सकें। विपश्यना का अभ्यास करते समय साधक को अपने श्वास पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और धीरे-धीरे अपनी ध्यान विधि में सुधार करना चाहिए। साधना के दौरान आने वाले विचारों और भावनाओं को केवल अवलोकन करना है, उन्हें अपने साथ जोड़ने या उन पर प्रतिक्रिया करने के बजाय। इस प्रकार, विपश्यना साधना एक सरल लेकिन गहन प्रक्रिया है, जो साधक को मानसिक शांति, समझ और अंतर्दृष्टि की ओर ले जाती है। यह न केवल व्यक्तिगत विकास के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समग्र जीवन में संतुलन और शांति प्राप्त करने में भी सहायक है।


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