आर्यभटीयम् | Aryabhatiyam
- श्रेणी: इतिहास / History गणित / Mathematics भारत / India
- लेखक: उदयनारायण सिंह - Udaynarayan Singh
- पृष्ठ : 141
- साइज: 3 MB
- वर्ष: 1958
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दो शब्द :
यह पाठ ज्योतिष और भारतीय पुराणों के संदर्भ में समुद्र मंथन की कथा का वर्णन करता है। इसमें बताया गया है कि कैसे देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया ताकि अमृत प्राप्त किया जा सके। इस प्रक्रिया में अनेक अद्भुत वस्तुओं और जीवों का प्रकट होना उल्लेखित है, जैसे पारिजात, ऐरावत हाथी, और अमृत से भरा कलश। पाठ में यह भी चर्चा की गई है कि समुद्र मंथन के समय विष निकला, जिसे महादेव ने अपने कंठ में धारण किया, जिससे उनका नाम 'नीलकंठ' पड़ा। इसके बाद, समुद्र मंथन से उत्पन्न विभिन्न वस्तुओं में से मोहिनी रूप धारण कर भगवान विष्णु ने अमृत का वितरण किया। पाठ में राहु का उल्लेख भी है, जिसने कपट से अमृत पाने का प्रयास किया लेकिन चंद्रमा द्वारा उसकी पहचान उजागर कर दी गई। इस कथा के माध्यम से पाठ यह दर्शाता है कि कैसे देवताओं ने एकजुट होकर कठिनाइयों का सामना किया और अंततः विजय प्राप्त की। यह भारतीय संस्कृति में सहयोग, संघर्ष, और विजय की भावना को प्रकट करता है। पाठ का अंत समुद्र मंथन के विभिन्न परिणामों और उनके महत्व पर विचार करते हुए होता है।
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