राजेंद्र प्रसाद आत्मकथा | Rajendra Prasad Aatmakatha

By: राजेन्द्रप्रसाद सिंह - Dr. Rajendraprasad Singh


दो शब्द :

इस पाठ में श्री राजेन्द्र बाबू की आत्मकथा का परिचय दिया गया है। लेखक ने बताया कि उन्होंने राजेन्द्र बाबू से पहली बार सन् 1918 में खेड़ा सत्याग्रह के समय मुलाकात की थी, और तभी से उनके प्रति एक विशेष आकर्षण महसूस किया। यह आत्मकथा राजेन्द्र बाबू के जीवन के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती है, जिसमें उनके बाल्यकाल, सामाजिक परिप्रेक्ष्य, और उस समय के शिक्षा और धार्मिक प्रथाओं का वर्णन किया गया है। लेखक ने यह भी बताया कि राजेन्द्र बाबू की सरलता और नम्रता का प्रभाव उनकी आत्मकथा के हर पन्ने पर दिखाई देता है। आत्मकथा में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के विभिन्न महत्वपूर्ण क्षणों और घटनाओं का वर्णन है, जैसे वंग-भंग का आंदोलन, चम्पारण सत्याग्रह, और अन्य आंदोलनों का जिक्र किया गया है। यह आत्मकथा न केवल राजेन्द्र बाबू के व्यक्तिगत जीवन का इतिहास है, बल्कि यह उस समय के भारतीय समाज और राजनीति का एक जीवित दस्तावेज भी है। पाठक इस आत्मकथा से प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं और इसे देशभक्ति की भावना से भरी एक महत्वपूर्ण रचना के रूप में देख सकते हैं। आखिर में, लेखक ने पाठकों को इस आत्मकथा को पढ़ने की सलाह देते हुए कहा है कि यह देशप्रेमियों के लिए अनिवार्य है।


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