अभिधनारजेन्द्र : | Abhidhanarajendra :
- श्रेणी: संस्कृत /sanskrit साहित्य / Literature
- लेखक: विजया राजेंद्र सुरी - Vijayarajendra Suri
- पृष्ठ : 1222
- साइज: 112 MB
- वर्ष: 1913
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दो शब्द :
यह पाठ जैन धर्म और संस्कृत भाषा के संबंध में विभिन्न विषयों को प्रस्तुत करता है। इसमें जैन साहित्य, संस्कृत कोशों, और प्राकृत भाषाओं के अध्ययन पर चर्चा की गई है। पाठ में यह बताया गया है कि कैसे विभिन्न भाषाएँ और उनके शब्दावली का संग्रह किया गया है, जो कि ज्ञान के प्रसार के लिए महत्वपूर्ण है। लेखक ने संस्कृत और प्राकृत की तुलना की है और यह बताया है कि कैसे जैन धर्म के अनुयायी इन भाषाओं का उपयोग करते हैं। यहाँ पर यह भी उल्लेख है कि संस्कृत भाषा के शब्दों और उनके अर्थों को समझने के लिए विभिन्न कोशों का निर्माण किया गया है। लेखक ने जैन ग्रंथों के संदर्भ में शब्दों के प्रयोग और उनके अर्थों की व्याख्या की है। पाठ में यह भी बताया गया है कि जैन धर्म में ज्ञान की खोज और अध्ययन का महत्व है, और यह कि जैन दर्शन में शब्दों का चयन और उनका अर्थ बहुत महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, यह भी स्पष्ट किया गया है कि कैसे विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में ज्ञान का संकलन किया गया है, जिससे अध्ययन के लिए एक आधारभूत संरचना तैयार होती है। इस प्रकार, पाठ ज्ञान, भाषा, और धर्म के संगम को दर्शाता है, और यह बताता है कि कैसे सांस्कृतिक और धार्मिक संदर्भ में भाषा का अध्ययन किया जाता है।
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