संगीत-सागर | Sangeet-Sagar

By: प्रभुलाल गर्ग - Prabhulal Garg
संगीत-सागर | Sangeet-Sagar by


दो शब्द :

इस पाठ में संगीत के महत्व और उसकी उपयोगिता पर चर्चा की गई है। पाठ का आरंभ भगवान से एक संवाद से होता है, जिसमें यह बताया गया है कि संगीत का स्थान ईश्वर के हृदय में नहीं है, बल्कि यह मानव के हृदय में विद्यमान है। संगीत को नाद के रूप में समझा जाता है, जो सृष्टि की शुरुआत से जुड़ा है। भारतीय संस्कृति में देवी-देवताओं के साथ संगीत का गहरा संबंध है, जैसे शिव का डमरू, कृष्ण की बंसी आदि। लेखक ने यह बताया है कि हर इंसान के अंदर संगीत की एक भावना होती है, और यह संगीत ही है जो थकान दूर करने और मन में शांति लाने में मदद करता है। संगीत को सुनना और गाना एक तरह का मानसिक स्नान है, जो व्यक्ति को तरोताजा करता है। पाठ में यह भी बताया गया है कि संगीत की कला का प्रचार तेजी से बढ़ रहा है, और इसे स्कूलों और कॉलेजों में अनिवार्य विषय के रूप में शामिल किया जाना चाहिए। लेखक ने संगीत की शिक्षा को माता-पिता का एक महत्वपूर्ण दायित्व बताया है और संगीत को सीखने के लिए सही मार्गदर्शन और लगन की आवश्यकता पर जोर दिया है। अंत में, लेखक ने पाठकों को प्रेरित किया है कि वे संगीत के सागर में गोताखोरी करें और इससे लाभ उठाएं। उन्होंने संगीत के विभिन्न पहलुओं, जैसे राग, ताल, और लय के बारे में भी जानकारी दी है। पाठ का उद्देश्य पाठकों को संगीत के प्रति जागरूक करना और इसके महत्व को समझाना है।


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