अध्यात्म रोगों की चिकित्सा | Adhyatma Rogon Ki Chikitsa

By: इन्द्र विद्यावाचस्पति - Indra Vidyavachspati


दो शब्द :

इस पाठ में "अध्यात्म रोगों की चिकित्सा" शीर्षक के अंतर्गत लेखक ने आध्यात्मिक रोगों की पहचान, उनके कारण और चिकित्सा के उपायों का विवरण प्रस्तुत किया है। लेखक का मानना है कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य चरित्र निर्माण है, और यह केवल बच्चों में ही नहीं, बल्कि युवाओं और प्रौढ़ों में भी आवश्यक है। इस संदर्भ में, वे शारीरिक रोगों की चिकित्सा के लिए पुस्तकालय से जानकारी प्राप्त करने की अपनी आदत का उल्लेख करते हैं, जबकि आध्यात्मिक रोगों के समाधान के लिए उन्हें अनेक शास्त्रों का सहारा लेना पड़ता है। लेखक ने यह विचार किया है कि एक ऐसा ग्रंथ तैयार किया जाए जो आध्यात्मिक रोगों के रोगियों और उनके परामर्शदाताओं के लिए मार्गदर्शक बन सके। उन्होंने अपनी रूपरेखा में भारतीय और विदेशी विचारकों के मतों को अपने अनुभव के साथ जोड़कर एक निबंध तैयार किया है, जो माता-पिता और शिक्षकों के लिए सहायक सिद्ध हो सकता है। पाठ में यह भी बताया गया है कि आध्यात्मिक रोगों का निदान केवल शारीरिक चिकित्सा से नहीं, बल्कि सही शिक्षा, उचित आहार-विहार, सत्संगति और श्रद्धा से संभव है। लेखक का उद्देश्य है कि इस निबंध के माध्यम से आध्यात्मिक रोगों को समझा जाए और उनका उपचार किया जाए। अंत में, लेखक ने पाठकों को इस निबंध का लाभ उठाने की सलाह दी है और भविष्य में इस विषय पर विस्तृत ग्रंथ लिखने की इच्छा व्यक्त की है।


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