पारंपरिक भारतीय रंगमंच | Paramparik Bharatiya Rangmanch
- श्रेणी: Cultural Studies | सभ्यता और संस्कृति नाटक/ Drama भारत / India
- लेखक: अज्ञात - Unknown
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- साइज: 11 MB
- वर्ष: 1995
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दो शब्द :
इस पाठ में पारंपरिक भारतीय रंगमंच की विविधता और उसकी विशेषताओं का विस्तृत वर्णन किया गया है। लेखक कपिला वात्स्यायन ने पारंपरिक रंगमंच के विभिन्न रूपों जैसे कुटियट्टम, यक्षगान, भागवतमेला, कुचिपुड़ी, मयूरभंज छऊ, पुरुलिया छऊ, रामलीला, रासलीला, यात्रा, भवाई, स्वांग, ख्याल, नौटंकी, और तमाशा का वर्णन किया है। उन्होंने इन परंपराओं की गहराई में जाकर उनकी सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भों को समझाने का प्रयास किया है। लेखक ने भारतीय प्रदर्शनकारी कला के इतिहास को समझने के लिए विभिन्न भाषाओं और साहित्यिक परंपराओं का अध्ययन किया है। वे यह बताते हैं कि भारतीय रंगमंच केवल नृत्य और संगीत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक संपूर्ण अनुभव है जिसमें कथा, गीत और अभिनय का संयोजन होता है। वे इस बात पर जोर देती हैं कि साहित्यिक और मौखिक परंपनाओं को एक साथ देखा जाना चाहिए, क्योंकि ये दोनों आपस में जुड़े हुए हैं और भारतीय नाट्यशास्त्र की परंपरा से संबंधित हैं। इस अध्ययन का उद्देश्य है कि पारंपरिक रंगमंच के नए रूपों और उनकी कला शैलियों का समग्र अध्ययन किया जाए। लेखक ने विभिन्न विद्वानों और कलाकारों का आभार व्यक्त किया है जिन्होंने इस क्षेत्र में उनके ज्ञान को बढ़ाने में मदद की। साथ ही, उन्होंने यह भी उल्लेख किया है कि रंगमंच के विभिन्न रूपों के बारे में जानकारी इकट्ठा करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। कुल मिलाकर, यह पाठ पारंपरिक भारतीय रंगमंच की गहराई, उसकी विविधता और सांस्कृतिक महत्व को उजागर करता है, और यह दिखाता है कि कैसे ये प्रदर्शनकारी कला के रूप सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश से प्रभावित होते हैं।
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