गढ़मंडल की रानी | Gadhmandal Ki Rani
- श्रेणी: इतिहास / History साहित्य / Literature
- लेखक: धीरेन्द्र वर्मा - Dheerendra Verma
- पृष्ठ : 97
- साइज: 28 MB
- वर्ष: 1961
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दो शब्द :
इस पाठ का सारांश इस प्रकार है: पाठ का आरंभ एक पुस्तकालय के संदर्भ से होता है, जिसमें बताया गया है कि सुन्दर विचारों के माध्यम से सुन्दर चरित्र का निर्माण होता है। यह विशेषकर किशोरों के लिए आवश्यक है क्योंकि उत्तम चरित्र समाज और राष्ट्र की उन्नति में सहायक होता है। पाठ में एक उपन्यास का उल्लेख है जो किशोरों के लिए लिखा गया है, जिसमें रोचकता और वास्तविक घटनाएँ शामिल हैं। कहानी की शुरुआत राजकुमारी दुर्गावती और उनके पिता की घुड़सवारी से होती है। दुर्गावती अपनी साहसिकता और गुणों के लिए जानी जाती हैं। पाठ में चन्देल राजपूतों का उल्लेख है, जिन्होंने अपने वीरता और एकता के बल पर एक राज्य स्थापित किया था, लेकिन आपसी फूट के कारण उनकी शक्ति कमजोर हो गई और मुसलमानों ने इस अवसर का लाभ उठाया। राजकुमारी दुर्गावती की शिक्षा एक विद्वान राजगुरु से होती है, जो राजनीति और युद्ध कला में निपुण हैं। वह दुर्गावती को एक कहानी सुनाते हैं जिसमें सिकंदर के भारतीयों के प्रति अपमानजनक शब्दों का उल्लेख है। राजगुरु बताते हैं कि चंद्रगुप्त मौर्य ने सिकंदर को चुनौती दी थी और उसकी रावटी में जाकर उसे पराजित करने का साहस दिखाया था। यह कहानी दुर्गावती को प्रेरित करती है और उनके साहस को बढ़ाती है। कहानी का यह हिस्सा भारतीय वीरता, साहस और एकता की आवश्यकता पर जोर देता है, साथ ही यह बताता है कि कैसे अपमान का बदला लेने की प्रेरणा वीरता का संचार करती है। पाठ का मुख्य उद्देश्य किशोरों में अच्छे विचारों और चरित्र का विकास करना है।
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