बहती गंगा | Bahti Ganga

By: शिव प्रसाद मिश्र - Shiv Prasad Mishr
बहती गंगा | Bahti Ganga by


दो शब्द :

"बहती गंगा" उपन्यास का सारांश यह है कि यह काशी के ऐतिहासिक जीवन का एक समृद्ध और जीवंत चित्रण प्रस्तुत करता है। उपन्यासकार शिवप्रसाद मिश्र ने इस कृति में पिछले दो सौ वर्षों के काशी के जीवन की गहराई से पड़ताल की है। उपन्यास में विभिन्न वर्गों के पात्र, जैसे राजा, साधारण लोग और नायिकाएँ, अपनी-अपनी वास्तविकता और समस्याओं के साथ उपस्थित हैं, जो पाठकों को गहराई से प्रभावित करते हैं। कहानी में राजा बल्वन्तलिह की वीरता और उनके द्वारा स्थापित आदर्शों को प्रमुखता से दर्शाया गया है। उपन्यास में वर्णित पात्र न केवल ऐतिहासिक हैं, बल्कि उनके संघर्ष और साहस भी प्रेरणादायक हैं। नायिकाएँ जैसे मंगला गीरी और दुलारी मौनहारिन, काशी की संस्कृति और कला का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो उनके जीवन में आत्मगौरव और साहस की महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। उपन्यास की भाषा सरल और प्रवाहमय है, जो पाठक को हर वाक्य में डूबने के लिए प्रेरित करती है। इसके शीर्षक और परिच्छेद पाठक को नई दृष्टि से सोचने पर विवश करते हैं, जिससे उपन्यास का अनुभव और भी रोचक बन जाता है। कुल मिलाकर, "बहती गंगा" एक नई शक्ति और कला का प्रतिनिधित्व करती है, जो न केवल ऐतिहासिक घटनाओं को दर्शाती है, बल्कि मानव जीवन के विविध रंगों और भावनाओं को भी बखूबी प्रस्तुत करती है। यह उपन्यास एक अद्वितीय दृष्टि के साथ काशी के जीवन को जीवंत करता है, जिससे पाठक का मन मोह लिया जाता है।


Please share your views, complaints, requests, or suggestions in the comment box below.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *