विवेकानंद ग्रन्थावली पार्ट २ | Vivekanand Granthavali Part 2
- श्रेणी: दार्शनिक, तत्त्वज्ञान और नीति | Philosophy भारत / India
- लेखक: जगन्मोहन वर्मा - Jaganmohan Verma स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand
- पृष्ठ : 328
- साइज: 128 MB
- वर्ष: 1923
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दो शब्द :
यह पाठ विभिन्न विषयों पर आधारित है, जिसमें भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ, स्वामी विवेकानंद की शिक्षाएं, और वेदांत के सिद्धांतों पर चर्चा की गई है। पाठ में राजा श्रीभ्रजीतसिंहजी और उनके परिवार का उल्लेख किया गया है, जिसमें उनकी संतानों के विवाह और उनके जीवन का वर्णन किया गया है। विशेष रूप से, रानी सूयकुमारीजी की शिक्षा और उनकी इच्छा का उल्लेख है कि वे स्वामी विवेकानंद के ग्रंथों का हिंदी में अनुवाद करना चाहती थीं। उनका यह संकल्प अंततः उनके निधन के बाद भी पूरा किया गया, जिससे हिंदी भाषा का विकास हो सके। इसके अलावा, पाठ में वेदांत के सिद्धांतों की व्याख्या की गई है। यह बताया गया है कि कैसे आदर्शों को अपने जीवन में उतारना चाहिए और मनुष्य की आत्मा की वास्तविकता को समझना चाहिए। वेदांत मनुष्य को अपने ऊपर विश्वास करने की सलाह देता है और बताता है कि आत्मा न शुद्ध है और न सर्वव्यापी, बल्कि यह सदा से है। पाठ में यह भी कहा गया है कि मनुष्य को अपनी शक्ति और सामर्थ्य पर विश्वास करना चाहिए और इसे आत्मा की वास्तविकता के रूप में स्वीकार करना चाहिए। इसमें यह विचार भी प्रस्तुत किया गया है कि वास्तविक जीवन में आदर्शों को अपनाना और उन्हें अपने जीवन में लागू करना कितना महत्वपूर्ण है। अंत में, पाठ में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि वास्तविकता को आदर्श के अनुसार ढालना चाहिए, और यह कि वेदांत का मुख्य आदर्श एकता है। इस प्रकार, यह पाठ भारतीय संस्कृति, शिक्षा और आत्मिक विकास पर एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।
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