सूरदास और भ्रमरगीत सार | Surdas aur Bhramargeet Saar

By: किशोरी लाल - Kishori Lal
सूरदास और भ्रमरगीत सार   | Surdas aur Bhramargeet Saar by


दो शब्द :

इस पाठ में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा रचित "भ्रमरगीत" का विश्लेषण और समीक्षा की गई है। लेखक डॉ. किशोरी लाल ने इस काव्य की गहरी व्याख्या की है, जो विशेष रूप से प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होने वाले छात्रों के लिए उपयोगी है। उन्होंने बताया है कि बाजार में इस विषय पर कई पुस्तकें उपलब्ध हैं, लेकिन कई टीकाकार इस काव्य के गूढ़ अर्थों और भावनाओं को समझने में असफल रहे हैं। लेखक ने यह भी उल्लेख किया है कि भ्रमरगीत की परंपरा का उल्लेख श्रीमद्भागवत से मिलता है, जबकि सूर ने इसे अपने विशेष दृष्टिकोण से काव्य में ढाला है। उन्होंने भ्रमरगीत की मौलिकता पर प्रकाश डाला है और बताया है कि सूर ने इस काव्य में प्रेम, भक्ति, और सामाजिक संदर्भों को जोड़कर उसे नया आयाम दिया है। सूर के भ्रमरगीत की विशेषताएँ जैसे वियोग-वर्णन, प्रकृति-वर्णन, और कलात्मक दृष्टि को भी व्याख्यायित किया गया है। इसके साथ ही, सूर की भाषा, अर्थ की गहराई, और आलंकारिक योजना का भी विश्लेषण किया गया है। इस प्रकार, यह पाठ "भ्रमरगीत" की गहराई, उसकी सांस्कृतिक और साहित्यिक महत्ता को समझने का प्रयास करता है, जिससे पाठकों को इस काव्य के प्रति एक नई दृष्टि मिल सके।


Please share your views, complaints, requests, or suggestions in the comment box below.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *