कैसे सोचें ? | Kaise Sochein?

By: आचार्य महाप्रज्ञ - Acharya Mahapragya
कैसे सोचें ? | Kaise Sochein? by


दो शब्द :

इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य यह समझाना है कि सही तरीके से सोचने की प्रक्रिया और उसके प्रभाव कैसे होते हैं। आचार्य महाप्रज्ञ बताते हैं कि मनुष्य एक सोचने वाला प्राणी है और उसका सोचने का तरीका उसके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालता है। सकारात्मक (विधायक) सोच से न केवल व्यक्ति का स्वयं का विकास होता है, बल्कि सामाजिक और मानवीय संबंध भी बेहतर होते हैं। इसके विपरीत, नकारात्मक (निषेधात्मक) सोच से व्यक्ति और समाज में कटुता और अवरुद्धता आती है। इसके बाद, आचार्य ने हृदय-परिवर्तन के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि बाहरी परिवर्तनों के मुकाबले आंतरिक परिवर्तन अधिक महत्वपूर्ण हैं। आंतरिक परिवर्तन के लिए भाव, विचार और रसायनों का परिवर्तन आवश्यक है। यह प्रक्रिया एकाग्रता, समता, जागरूकता, वस्तुनिष्ठ आकर्षण के परिवर्तन और मिथ्यादृष्टिकोण के परिवर्तन से संभव होती है। आचार्य ने भय के स्रोतों और भय-मुक्ति के उपायों पर भी चर्चा की। उन्होंने बताया कि भय की उत्पत्ति सत्त्वहीनता, भय की मति, सतत चितन और भय के परमाणुओं के उत्तेजित होने से होती है। भय-मुक्ति के लिए प्रेक्षा-ध्यान एक महत्वपूर्ण साधन है। इस पुस्तक में चिन्तन की प्रक्रिया, हृदय-परिवर्तन के उपाय और भय-मुक्ति के साधनों के बारे में विस्तृत चर्चा की गई है। आचार्य महाप्रज्ञ ने इस विचार-मंथन में आचार्य तुलसी के योगदान और मुनि दुलहराज के सम्पादन कौशल का भी उल्लेख किया है। उनका उद्देश्य है कि पाठक इस ज्ञान से लाभ उठाकर अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकें।


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