आर्ष-ग्रंथवलि बृहदारण्यक उपनिषद् | Aarsh-Granthavali Brihadaranyak Upanishad

By: पं राजाराम - Pt. Rajaram Profesar
आर्ष-ग्रंथवलि बृहदारण्यक उपनिषद् | Aarsh-Granthavali Brihadaranyak Upanishad by


दो शब्द :

इस पाठ में बम्बई पुस्तकालय की पुस्तकें, विशेष रूप से वेद, उपनिषद और शास्त्रों पर आधारित विभिन्न ग्रंथों का उल्लेख किया गया है। पाठ में प्रज्ञा, विशारद और शास्त्री परीक्षाओं के लिए आवश्यक पुस्तकों का विवरण दिया गया है। इसमें श्रीमद्भगवद्गीता, उपनिषदों और निरुक्त की हिंदी व्याख्या पर भी चर्चा की गई है। निरुक्त के संदर्भ में बताया गया है कि इसमें शब्दों का अर्थ स्पष्ट करने के लिए विभिन्न व्याकरणिक नियमों का उपयोग किया गया है। यह बताया गया है कि किस प्रकार मनुष्य के अंदर भलाई और स्वार्थ की प्रवृत्तियाँ कार्य करती हैं और इन दोनों के बीच की स्पर्धा को समझाया गया है। पाठ में यज्ञ का महत्व और उसका उद्देश्य भी वर्णित किया गया है, जिसमें बताया गया है कि कैसे यज्ञ के माध्यम से स्वार्थ को परोपकार में बदला जा सकता है। अंत में, यह विचार प्रस्तुत किया गया है कि मनुष्य को अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए जीवन में उत्कृष्टता प्राप्त करनी चाहिए और स्वार्थी प्रवृत्तियों से दूर रहना चाहिए। पाठ का मुख्य संदेश है कि धर्म और परोपकार की भावना को अपनाकर ही मनुष्य सच्चे अर्थ में जीवन का उद्देश्य प्राप्त कर सकता है।


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