दहला पागल हो गया | Dahla Pagal Ho Gaya
- श्रेणी: कहानियाँ / Stories साहित्य / Literature
- लेखक: शांति प्रकाश जी - Shanti Prakash Ji श्रीयुत पण्डित शिवकुमार शास्त्री - Shriyut Pandit Shivkumar Shastri
- पृष्ठ : 108
- साइज: 1 MB
- वर्ष: 1597
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दो शब्द :
इस पाठ का सारांश इस प्रकार है: इस पाठ में पं. शांतिप्रकाश जी ने स्वामी केशवपुरी द्वारा लिखी गई पुस्तक "नहले पर दहले" के प्रति अपनी कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। लेखक ने स्वामी केशवपुरी के विचारों को अज्ञानता और असम्मान के रूप में देखा है, विशेष रूप से ऋषि दयानंद के प्रति। उन्होंने कहा है कि स्वामी केशवपुरी ने आर्य समाज की महान परंपरा पर प्रहार किया है और इसे पागलपन का प्रलाप समझा। लेखक ने ऋषि दयानंद को भारतीय समाज के लिए एक उज्ज्वल सितारे के रूप में देखा है, जिन्होंने भारत को जागरूक किया और जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाई। लेखक ने यह भी कहा है कि स्वामी केशवपुरी और उनके समर्थकों ने ऋषि दयानंद पर अपशब्द कहकर अपनी छवि को गिराया है। उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि ऋषि दयानंद की शिक्षाओं ने भारत के लोगों में एकता और जागरूकता का संचार किया। इसी क्रम में, लेखक ने महात्मा गांधी के विचारों को भी उद्धृत किया है, जिसमें गांधी जी ने मूर्तिपूजा के खिलाफ अपनी राय रखी थी। लेखक ने यह दिखाने का प्रयास किया है कि महात्मा गांधी ने कभी भी आर्य समाज के सिद्धांतों का खंडन नहीं किया। पाठ का अंत इस भाव के साथ होता है कि लेखक प्रार्थना करता है कि स्वामी केशवपुरी और उनके समर्थक सही मार्ग पर लौटें और वेदों और भारतीय परंपराओं की रक्षा करें। इस प्रकार, पाठ में धार्मिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर गहन विचार-विमर्श किया गया है, जिसमें ऋषि दयानंद और आर्य समाज के योगदान को रेखांकित किया गया है।
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