नारद भक्ति दर्शन | Narad Bhakti Darshan
- श्रेणी: दार्शनिक, तत्त्वज्ञान और नीति | Philosophy भक्ति/ bhakti
- लेखक: स्वामी अखण्डानन्द - Swami Akhandanand
- पृष्ठ : 558
- साइज: 39 MB
- वर्ष: 1939
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दो शब्द :
यह पाठ "नारदभक्तिदर्शन" पर आधारित है, जो भगवान नारद द्वारा रचित भक्ति के सिद्धांतों का संग्रह है। यह ग्रंथ भक्ति के स्वरूप, लक्षण, प्रक्रिया, और फल को समझाने का प्रयास करता है। इसमें नारदजी का जीवन और उनके ज्ञान का महत्व बताया गया है। नारद, जो कि ब्रह्मा के मानस पुत्र और भगवान नर-नारायण के शिष्य हैं, ने भक्ति का प्रचार किया और इसे जन-जन तक पहुँचाने का संकल्प लिया। पुस्तक में विभिन्न अध्यायों में भक्ति के सिद्धांतों का विवेचन किया गया है। भक्ति की परिभाषा, इसके रूप, भक्त के लक्षण, और भक्त के ज्ञान का फल जैसी विषय-वस्तुओं का समावेश है। इसमें यह भी बताया गया है कि भक्ति से भगवान की प्राप्ति अधिक महत्वपूर्ण है और भक्ति के विभिन्न साधनों का उल्लेख किया गया है। भक्ति का महत्व निरंतरता से उजागर किया गया है, जिसमें प्रेम और समर्पण की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है। पाठ में यह भी बताया गया है कि भक्ति की प्रक्रिया में संतों का संग और कुसंग से दूर रहना आवश्यक है। सारांश में, "नारदभक्तिदर्शन" भक्ति के गहन सिद्धांतों का संग्रह है, जो साधकों को भगवान के प्रति प्रेम और भक्ति में समर्पित होने की प्रेरणा देता है। यह ग्रंथ भक्ति के मार्ग पर चलने वालों के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है।
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