जन्मेजय का नाग - यज्ञ | Janmejay ka Naag-Yajna
- श्रेणी: कहानियाँ / Stories हिंदू - Hinduism
- लेखक: जयशंकर प्रसाद - jayshankar prasad
- पृष्ठ : 128
- साइज: 3 MB
- वर्ष: 1934
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दो शब्द :
इस नाटक का सारांश एक प्राचीन भारतीय घटना से संबंधित है, जिसमें सम्राट जनमेजय का अश्वमेध यज्ञ और नागों के प्रति उनकी शत्रुता का वर्णन किया गया है। भारतीय परंपरा में, क्षत्रिय राजाओं को किसी भी बड़ी बुराई, जैसे ब्रह्महत्या, के पश्चात अपने पवित्रता को पुनः प्राप्त करने के लिए अश्वमेध यज्ञ करना अनिवार्य होता था। जनमेजय, जो कि पांडवों के वंशज थे, ने इस यज्ञ का आयोजन किया ताकि वे नागों का वध कर सकें, खासकर तक्षक, जो उनके पूर्वज राजा परीक्षित की हत्या का जिम्मेदार था। इस नाटक में यह दिखाया गया है कि जनमेजय ने यज्ञ के दौरान नागों को जलाने के लिए अग्नि में फेंकने का आदेश दिया था। यज्ञ के समय, कई ऋषि-मुनि उपस्थित थे, और इस संदर्भ में काश्यप नामक पुरोहित की भूमिका महत्वपूर्ण थी। काश्यप ने जनमेजय को नागों के खिलाफ उकसाया, जिससे एक बड़ा विद्रोह शुरू हुआ। यह नाटक नागों और उनके पुरखों की वीरता को भी उजागर करता है और यह दर्शाता है कि कैसे अतीत की घटनाओं ने वर्तमान का आकार दिया। इस नाटक के पात्रों में जनमेजय, तक्षक, वासुकि, काश्यप, और अन्य शामिल हैं, जिनका संबंध भारतीय पौराणिक कथाओं से है। नाटक में कल्पित पात्रों का उपयोग करके लेखक ने ऐतिहासिक घटनाओं को एक नाटकीय रूप देने का प्रयास किया है, जिससे दर्शकों को भारतीय संस्कृति और इतिहास की जटिलताओं का अनुभव हो सके। जनमेजय का यह यज्ञ न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह सामाजिक और राजनीतिक संघर्षों का भी प्रतीक है। यह नाटक नाग जाति के उत्थान और पतन की कहानी को भी दर्शाता है, जिसमें विभिन्न पात्रों के माध्यम से उनकी वीरता और संघर्ष को चित्रित किया गया है। इस प्रकार, यह नाटक ऐतिहासिक संदर्भों के साथ-साथ मानवीय भावनाओं और संघर्षों का भी उत्कृष्ट प्रदर्शन करता है।
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