संत काव्य -धारा | Sant Kavya - Dhara

By: परशुराम चतुर्वेदी - Parashuram Chaturvedi
संत काव्य -धारा | Sant Kavya - Dhara by


दो शब्द :

इस पाठ में संत-साहित्य और संतों की काव्य-रचना के महत्व पर चर्चा की गई है। संतों की परंपरा केवल वैष्णव धर्म तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अन्य धर्मों के लिए भी खुली रही है। संत रहस्यवादी होते हैं, और उनके लिए परम सत्य का अनुभव कठिन होता है। संतों का साहित्य समाज में सामाजिक चेतना को उजागर करता है और जीवन के मूल्यों को नई गरिमा प्रदान करता है। संत-काव्यधारा का नामकरण संत-काव्य के परिवर्तित रूप में किया गया है, जिसमें संतों की रचनाओं का संक्षिप्त संस्करण प्रस्तुत किया गया है। संतों का धर्म न तो अंधविश्वासी है और न ही केवल भक्ति प्रदर्शन। उनकी रचनाएँ आत्म-निरीक्षण और स्वानुभूति पर आधारित होती हैं। संतों ने अपने अनुभवों को व्यक्त करने के लिए भाषा और शैली का उपयोग किया है, जो आम जनता के साथ जुड़ी हुई है। इस पुस्तक में संतों की रचनाओं का संग्रह किया गया है, जिसमें विभिन्न संतों की रचनाएँ शामिल हैं। ये रचनाएँ संतों के व्यक्तिगत अनुभव और विचारों का प्रतिनिधित्व करती हैं। संतों की रचनाएँ साहित्यिक मानदंडों के अनुसार परखी नहीं जा सकतीं, क्योंकि उनका उद्देश्य भक्ति और साधना के माध्यम से जीवन के गहरे अनुभवों को साझा करना था। पुस्तक में संतों की भिन्न-भिन्न रचनाओं का परिचय दिया गया है, जिसमें प्रमुख संतों की जीवनी और उनके विचारों का संक्षिप्त वर्णन शामिल है। संतों की रचनाएँ सरल और सुबोध हैं, और इनमें भावनाओं की गहराई है। पाठ में संत-साहित्य के विभिन्न पहलुओं को समझाने के लिए उदाहरण भी दिए गए हैं, जिससे पाठक संतों की काव्य-शैली और उनके विचारों को बेहतर तरीके से समझ सकें। इस प्रकार, यह पाठ संत-साहित्य की गहराई और संतों के योगदान को उजागर करता है, जिसमें उनके अनुभवों और विचारों के माध्यम से मानवता के लिए एक मार्गदर्शक संदेश है।


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