योगदर्शन | Yog Darshan
- श्रेणी: Vedanta and Spirituality | वेदांत और आध्यात्मिकता योग / Yoga
- लेखक: श्री सम्पूर्णानन्द - Shree Sampurnanada
- पृष्ठ : 340
- साइज: 9 MB
- वर्ष: 1965
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दो शब्द :
इस पाठ में योग के महत्व और उसकी वर्तमान स्थिति पर चर्चा की गई है। लेखक डा. सम्पूर्णानन्द ने यह बताया है कि आज के समय में जब विश्वास और जीवन के दार्शनिक आधार कमजोर हो गए हैं, तब योग की आवश्यकता और भी बढ़ गई है। भौतिक सफलताओं के पीछे भागते लोग असली ज्ञान और संस्कृति को भूल रहे हैं। योग सभी उपासना पद्धतियों का मूल है और इसके बिना धर्म और संस्कृति को बनाए रखना मुश्किल है। पुस्तक में योग के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन किया गया है, जिसमें योग के अर्थ, योगी की स्थिति, पतंजलि के सूत्र, और योग की परिभाषा शामिल हैं। लेखक का मानना है कि योग केवल विद्या नहीं बल्कि एक व्यावहारिक जीवनशैली है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया है कि योगदर्शन का अध्ययन केवल संस्कृत विद्यालयों तक सीमित रह गया है, और इसके पठन-पाठन का उद्देश्य केवल परीक्षा में उत्तीर्ण होना रह गया है। डा. सम्पूर्णानन्द ने यह भी कहा है कि योग के सिद्धांतों को समझने और उनका सही उपयोग करने के लिए गहन अध्ययन और ध्यान की आवश्यकता है। उन्होंने यह चिंता व्यक्त की है कि योग के विषय में अनधिकृत लोग शिक्षण कर रहे हैं, जिससे योग की वास्तविकता को खतरा है। यह पाठ योग की गहराई और उसकी प्राचीनता को उजागर करता है, साथ ही यह भी बताता है कि योग केवल एक शारीरिक क्रिया नहीं है, बल्कि यह मन और आत्मा के संगम का माध्यम है। अंत में, लेखक ने पाठकों को योग के प्रति जागरूक होने और इसके वास्तविक स्वरूप को समझने के लिए प्रेरित किया है।
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