रसबन्ति | Rasbanti by


दो शब्द :

इस पाठ में लेखक दिनकर ने 'रसवन्ती' नामक रचना की विशेषताओं और उसके उद्देश्य पर प्रकाश डाला है। उन्होंने बताया है कि इस रचना में निरुद्देश्य प्रसन्नता की भावना है, और इसमें किसी निश्चित संदेश का अभाव है। लेखक ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि वे कल्पना की यात्रा में भटकते रहे हैं, और इस यात्रा में उनके मन की भावनाएँ भी शामिल हुई हैं। लेखक ने साहित्य की प्रगति पर भी विचार किया है। उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि प्रगति का अर्थ केवल साम्यवाद या किसी विशेष विचारधारा से नहीं है, बल्कि यह नवीनता का प्रतीक है। उन्होंने यह भी कहा कि साहित्य का उद्देश्य केवल सामाजिक या राजनीतिक आंदोलनों के प्रचार के लिए नहीं होना चाहिए, बल्कि यह मानवता की भावनाओं और अनुभवों का गहन गूढ़ता से अभिव्यक्ति करना चाहिए। इसके अलावा, लेखक ने यह विचार प्रस्तुत किया कि साहित्य और वास्तविकता के बीच का संबंध जटिल है। उन्होंने यह स्वीकार किया कि साहित्य की सबसे बड़ी शक्ति उसकी अनुभूति है, जो उसे सत्य और वास्तविकता से जोड़ती है। लेखक ने यह भी कहा कि कवि का कर्तव्य है कि वह अपनी कोमल भावनाओं को सुरक्षित रखते हुए समाज के प्रति अपना दायित्व निभाए। लेखक ने यह भी बताया है कि साहित्य की महानता उसकी संवेदनाओं और मानवीय अनुभवों में निहित है। उन्होंने कहा कि साहित्य को केवल राजनीतिक बैनर के नीचे लाना उचित नहीं है, क्योंकि यह मानव के गहरे अनुभवों और भावनाओं का संग्रह है। अंततः, लेखक ने यह सुझाव दिया कि साहित्य को समाज के संघर्षों और वास्तविकताओं के बीच संतुलन बनाते हुए आगे बढ़ना चाहिए।


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