तत्त्व -ज्ञान | Tattva-Gyaan

By: डॉ. दीवानचन्द - Dr. Deewanchand


दो शब्द :

इस पाठ में हिन्दी भाषा की समृद्धि और उसके विकास के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित हिन्दी परामर्श समिति के कार्यों का वर्णन किया गया है। समिति का उद्देश्य हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्थापित करना और उच्च शिक्षा के माध्यम के रूप में इसे सशक्त बनाना है। इसके तहत, समिति ने एक पंच-वर्षीय योजना तैयार की है, जिसके अंतर्गत 300 पुस्तकों का प्रकाशन किया जाएगा। ये पुस्तकें विभिन्न विषयों पर होंगी, खासकर उन विषयों पर जिनमें हिन्दी में सामग्री की कमी है। लेखक डा. दीवानचन्द ने तत्व-ज्ञान के महत्व को रेखांकित किया है। उन्होंने बताया कि तत्व-ज्ञान को एक समय में उच्च विचारों का स्रोत माना जाता था, लेकिन आधुनिक युग में इसे नजरअंदाज किया जा रहा है। उनके अनुसार, वर्तमान समय में विज्ञान और तत्व-ज्ञान के बीच का संबंध महत्वपूर्ण हो गया है, और समाज को तत्व-ज्ञान की अधिक आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि तत्व-ज्ञान साधारण जीवन को उन्नत करने का साधन है और यह जीवन के गहरे अनुभवों को समझने में मदद करता है। लेखक ने विभिन्न दार्शनिक विचारों का भी उल्लेख किया है, जैसे आत्मवाद, अमानसी आत्मवाद, और निरपेक्ष आत्मवाद, और यह बताया है कि ये विचार मानवता के विकास और ज्ञान की खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अंत में, लेखक ने यह बताया कि तत्व-ज्ञान और दार्शनिकता का अध्ययन न केवल ज्ञान का विस्तार करता है, बल्कि जीवन के अनुभवों को भी गहनता प्रदान करता है।


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