संस्कृति का प्रश्न | Sanskriti Ka Prashn

By: जे. कृष्णमूर्ति - J. Krishnamurti


दो शब्द :

इस पाठ में जे. कृष्णमूर्ति ने संस्कृति के प्रश्न पर विचार किया है। वे शिक्षा के महत्व को रेखांकित करते हैं और यह बताते हैं कि शिक्षा का उद्देश्य केवल व्यवसायिक कौशल हासिल करना नहीं होना चाहिए, बल्कि जीवन की समग्रता को समझने में सहायता करना चाहिए। वे सवाल करते हैं कि जब हम बड़े होते हैं, तो हमारा जीवन किस दिशा में जाता है। हम विवाह करते हैं, बच्चे पैदा करते हैं और इस प्रक्रिया में अपने आप को यंत्रवत् बना लेते हैं। कृष्णमूर्ति का कहना है कि इस यंत्रवत् जीवन से बाहर निकलने के लिए हमें स्वयं से प्रश्न पूछने की आवश्यकता है। वे यह सुझाव देते हैं कि शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य हमें जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझने में मदद करना है, न कि केवल उपाधियाँ और उच्च पद प्राप्त करना। वे यह भी बताते हैं कि यदि हम अपने जीवन में भय और चिंता के साथ जीते हैं, तो हमारे ज्ञान और मेधा का विकास नहीं हो सकता। वे शिक्षा को खोज के रूप में परिभाषित करते हैं, जो हमें स्वतंत्रता और आत्म-खोज की ओर ले जाती है। कृष्णमूर्ति यह दर्शाते हैं कि जीवन की वास्तविकता को समझना और सत्य की खोज करना ही शिक्षा का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए। वे यह सुझाव देते हैं कि हमें संगठित धर्म, परंपरा और समाज के विरुद्ध विद्रोह करना चाहिए ताकि हम अपने लिए सत्य की खोज कर सकें। कुल मिलाकर, यह पाठ शिक्षा और संस्कृति के संबंध में गहन विचार प्रस्तुत करता है और यह बताता है कि जीवन को समझने और जीने के लिए हमें अपने भीतर गहरी सोच और आत्म-विश्लेषण की आवश्यकता है।


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