रस- सिद्धांत | Ras - Siddhant
- श्रेणी: साहित्य / Literature
- लेखक: डॉ. नगेन्द्र - Dr.Nagendra
- पृष्ठ : 360
- साइज: 17 MB
- वर्ष: 1964
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दो शब्द :
इस पाठ का सारांश इस प्रकार है: पाठ में भारतीय काव्यशास्त्र, विशेष रूप से रस-सिद्धांत की चर्चा की गई है। लेखक ने अपनी साहित्य साधना और रस-सिद्धांत के विकास की प्रक्रिया को साझा किया है, जिसमें आधुनिक काव्य के अध्ययन की आवश्यकता महसूस की गई है। उन्होंने यह भी बताया है कि रस और अलंकार के बीच का संबंध प्रीति और विस्मय के माध्यम से स्थापित किया गया है, और भारतीय सौंदर्य-दर्शन का मूल आधार काव्यशास्त्र है। रस शब्द के विभिन्न अर्थों की व्याख्या की गई है, जिसमें इसे पदार्थों के रस, आयुर्वेद में, साहित्य में काव्य-सौंदर्य के लिए और मोक्ष या भक्ति के रस के रूप में देखा गया है। भारतीय काव्यशास्त्र में रस का महत्व विशेष रूप से उल्लेखित किया गया है, जहां इसे काव्य का प्राण-तत्त्व माना गया है। पाठ में रस की परिभाषा, उसका स्वरूप, और विभिन्न रसों की चर्चा की गई है। भारतीय काव्यशास्त्र में रस के सिद्धांतों की स्थापना और उनके विकास का इतिहास भी प्रस्तुत किया गया है। लेखक ने यह बताया कि वाल्मीकि, आनंदवर्धन, और अभिनवगुप्त जैसे विद्वानों के उद्धरणों से रस के सिद्धांत की जड़ें प्राचीन साहित्य में पाई जा सकती हैं। इस प्रकार, पाठ भारतीय काव्यशास्त्र के रस-सिद्धांत को समझने और उसके महत्व को उजागर करने का प्रयास है, जिसमें उसके विभिन्न पहलुओं को क्रमबद्ध तरीके से प्रस्तुत किया गया है।
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