सुन्दर समाज का निर्माण | Sundar Samaaj ka nirman
- श्रेणी: दार्शनिक, तत्त्वज्ञान और नीति | Philosophy सामाजिक कौशल/social skills साहित्य / Literature
- लेखक: स्वामी रामसुखदास - Swami Ramsukhdas
- पृष्ठ : 186
- साइज: 3 MB
- वर्ष: 1952
-
-
Share Now:
दो शब्द :
यह पाठ स्वामी रामसुखदास जी द्वारा दिए गए प्रवचनों का संग्रह है, जो उन्होंने बीकानेर और जयपुर में चातुर्मास के दौरान प्रस्तुत किए थे। इसमें समाज में बड़े व्यक्तियों की जिम्मेदारी, नम्रता और अभिमान के विषय में विचार किया गया है। स्वामी जी का कहना है कि समाज में जिम्मेदारी उन लोगों पर होती है जो बड़े कहलाते हैं। यदि समाज में कोई समस्या उत्पन्न होती है, तो उसके समाधान की जिम्मेदारी भी इन्हीं पर होती है। स्वामी जी ने गीता के संदर्भ में बताया है कि श्रेष्ठ व्यक्तियों के आचार-व्यवहार का प्रभाव समाज पर पड़ता है। उनका आचरण दूसरों के लिए अनुकरणीय होता है। वे यह भी बताते हैं कि केवल बाहरी भेष बदलने से कोई बड़ा नहीं होता, बल्कि सच्चे गुणों और नम्रता से ही व्यक्ति बड़ा बनता है। पाठ में यह भी दर्शाया गया है कि समाज में बड़प्पन का अभिमान नहीं, बल्कि विनम्रता होनी चाहिए। उनका कहना है कि ब्राह्मण, साधु और अन्य लोग जब अपने को बड़ा मान लेते हैं, तो वे वास्तव में गिर जाते हैं। स्वामी जी ने त्याग और सेवा की महिमा को भी उजागर किया है। उन्होंने यह सिखाया है कि ज्ञान और अनुभव का आदान-प्रदान महत्वपूर्ण है और वक्ता को अपनी बातों में नम्रता रखनी चाहिए। अंत में, स्वामी जी ने पाठकों से आग्रह किया है कि वे इन प्रवचनों का अध्ययन करें और अपने जीवन में उतारें ताकि वे परम लाभ प्राप्त कर सकें।
Please share your views, complaints, requests, or suggestions in the comment box below.