पुनर्नवा | Punarnva
- श्रेणी: साहित्य / Literature
- लेखक: हजारी प्रसाद द्विवेदी - Hazari Prasad Dwivedi
- पृष्ठ : 308
- साइज: 7 MB
- वर्ष: 1973
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दो शब्द :
पुनर्नवा एक उपन्यास है जिसमें मुख्य पात्र देवरात एक साधु पुरुष हैं, जो हलद्वीप में बस गए हैं। उनके बारे में लोगों में कई किंवदंतियाँ हैं, जैसे कि वे किसी राजकुमार के पुत्र हैं या किसी सिद्ध पुरुष के उपदेश से संसार से विरक्त हो गए हैं। देवरात का व्यक्तित्व आकर्षक है और वे अनेक कलाओं में निपुण हैं, जैसे कि कविता, संगीत और चित्रकला। वे दीन-दुखियों की सेवा में लगे रहते हैं और साधारण जनता के बीच उनका बहुत सम्मान है। उपन्यास में देवरात का आश्रम हलद्वीप के पास है, जहां वे बच्चों को पढ़ाते हैं। एक वृद्ध व्यक्ति, वृद्धगोप, उनके प्रति श्रद्धा रखता है और अपने दो बेटों को देवरात के पास पढ़ने के लिए भेजता है। देवरात दोनों बच्चों की प्रतिभा को पहचानते हैं और उन्हें उचित शिक्षा देने का आश्वासन देते हैं। हलद्वीप में मंजुला नाम की एक नर्तकी है, जो अपनी कला के लिए प्रसिद्ध है। उसका नृत्य सभी को मंत्रमुग्ध कर देता है, और राजा भी उसकी प्रशंसा करते हैं। देवरात भी उसके नृत्य से प्रभावित होते हैं, लेकिन वे कुछ आलोचना भी करते हैं, जिससे मंजुला को लगता है कि देवरात उनकी निंदा कर रहे हैं। उपन्यास में देवरात का चरित्र दीन-दुखियों की सेवा में समर्पित, विद्या और कला का ज्ञाता, और समाज में आदर्श स्थापित करने वाला है। वे न केवल अपने शिष्यों को शिक्षा देते हैं, बल्कि समाज में नैतिकता और उदारता का भी प्रचार करते हैं।
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