आकाश- दीप | Aakash -Deep

By: जयशंकर प्रसाद - jayshankar prasad
आकाश- दीप  | Aakash -Deep by


दो शब्द :

"आकाश-दीप" में जयशंकर प्रसाद ने मानव मन की गहराइयों को उजागर किया है। इस ग्रंथ में कई कहानियाँ संकलित हैं, जिनमें भावनाओं और मनोविज्ञान का गहन चित्रण किया गया है। पुस्तक की एक कहानी "ममता" में एक विधवा युवती ममता का जीवन चित्रित किया गया है, जो अपने पिता चूड़ामणि के साथ रहती है। ममता का जीवन दुखों और सामाजिक विडंबनाओं से भरा हुआ है। कहानी में ममता की कठिनाइयों का वर्णन है, जहाँ उसके पिता उसे उपहार देने की कोशिश करते हैं, लेकिन ममता उस उपहार को स्वीकार नहीं कर पाती। वह अपने ब्राह्मण धर्म और नैतिकता के प्रति जागरूक है और धन को स्वीकार करने से मना करती है। कहानी में एक युद्ध का भी संदर्भ है, जहाँ चूड़ामणि अपने परिवार की रक्षा के लिए संघर्ष करते हैं, लेकिन अंततः उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ती है। ममता की कहानी में एक मुगल सैनिक की भी एंट्री होती है, जो युद्ध के समय शरण मांगता है। ममता उसे सहानुभूति देती है, लेकिन उसके मन में द्वंद्व चलता है कि क्या उसे एक विधर्मी की मदद करनी चाहिए। कहानी का अंत ममता की वृद्धावस्था में होता है, जहाँ वह अपने जीवन के अनुभवों को याद करती है। उसके जीवन में संघर्ष और बलिदान का एक गहरा अर्थ है, लेकिन अंततः उसकी पहचान और योगदान को भुला दिया जाता है। "आकाश-दीप" में इस तरह की कहानियाँ केवल सामाजिक स्थितियों का ही नहीं, बल्कि मानव मन की जटिलताओं का भी चित्रण करती हैं। जयशंकर प्रसाद की यह रचना पाठकों को विचार करने के लिए मजबूर करती है कि समाज में व्यक्ति की वास्तविकता क्या होती है और उनकी भावनाएँ कितनी महत्वपूर्ण हैं।


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