सम्राट अशोक | Samrat Ashok by


दो शब्द :

सम्राट अशोक एक महान शासक के रूप में जाने जाते हैं, जिन्होंने अपने शासन में अहिंसा और धर्म का प्रचार किया। नाटक में अशोक के चरित्र का चित्रण किया गया है, जिसमें उनकी मनोवैज्ञानिक स्थिति और उनके द्वारा किए गए नैतिक निर्णयों को दर्शाया गया है। युद्ध के दौरान, अशोक की अंतर्दृष्टि जागृत होती है और वह सोचने लगते हैं कि हिंसा के माध्यम से धर्म का प्रचार करना अन्याय है। इस विचार के आधार पर, वह युद्ध के खिलाफ निर्णय लेते हैं और शांति की ओर बढ़ते हैं। अशोक को प्रेम की आवश्यकता महसूस होती है और वह प्रणयनी से मिलते हैं। नाटक में प्रणयनी का चरित्र भी महत्वपूर्ण है, जो अशोक के प्रति अपने प्रेम और कर्तव्यों के बीच संघर्ष करती है। अंत में, प्रेम की भावना उसके कर्तव्यों पर हावी हो जाती है और वह अशोक के प्रति अपने भावनाओं को स्वीकार करती है। नाटक में अन्य पात्रों के माध्यम से भी मानव मन की जटिलता और प्रेम, कर्तव्य, और नैतिकता के बीच संघर्ष को दर्शाया गया है। इस नाटक का उद्देश्य न केवल अशोक के महान चरित्र को उजागर करना है, बल्कि यह भी दिखाना है कि कैसे एक व्यक्ति अपने मूल्यों और मानवीयता के साथ जी सकता है। सम्राट अशोक के निर्णय और उनके द्वारा स्थापित शांति के सिद्धांत आज भी प्रेरणादायक हैं। यह नाटक हमें यह सिखाता है कि प्रेम और अहिंसा के मार्ग पर चलना कितना महत्वपूर्ण है।


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