छान्दोग्योपनिषद | Chhandogyopanishad

By: रायबहादुर बाबू जालिमसिंह - Rai Bahadur Babu Zalim Singh


दो शब्द :

यह पाठ छान्दोग्य उपनिषद का एक अंश है, जिसमें जीवन और ब्रह्म के संबंध की गहनता को दर्शाया गया है। इसमें बताया गया है कि सभी जीवों की उत्पत्ति, स्थिति और अंत पृथ्वी से होता है। पृथ्वी का जल के साथ गहरा संबंध है, और जल से अन्न का निर्माण होता है, जिससे मानव का जन्म होता है। मनुष्य का सार अन्न है, और अन्न का सार जल है। इसके अलावा, वाणी, ऋचाएँ और सामवेद का महत्व भी उल्लेखित है। पाठ में यह भी दर्शाया गया है कि ऋचाएँ और सामवेद वाणी और प्राण से जुड़े हुए हैं। वाणी के बिना ऋचाएँ नहीं बोली जा सकतीं और प्राण के बिना सामवेद का गान नहीं हो सकता। यह सभी एक दूसरे के पूरक हैं। आगे चलकर, यह बताया गया है कि यज्ञ में यजमान की इच्छाओं को पूरा करने के लिए विभिन्न वाद्य यंत्रों और मंत्रों का उपयोग किया जाता है। विद्वान व्यक्ति जो ज्ञान के साथ यज्ञ करता है, वह उत्तम फल प्राप्त करता है। इस प्रकार, पाठ जीवन के विभिन्न पहलुओं, ब्रह्म के सिद्धांतों, और यज्ञ की महत्ता को समझाने का प्रयास करता है।


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