मेरे गुरुदेव | Mere Gurudev

By: स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand
मेरे गुरुदेव | Mere Gurudev by


दो शब्द :

इस पाठ में भगवान श्रीरामकृष्ण परमहंस के विचारों और शिक्षाओं का वर्णन किया गया है। इसमें बताया गया है कि जब-जब धर्म का ह्रास होता है और अधर्म की वृद्धि होती है, तब भगवान अवतार लेते हैं। वर्तमान समय में आध्यात्मिक और भौतिक क्षेत्रों में सामंजस्य की आवश्यकता है। पश्चिमी जगत ने भौतिकता में प्रगति की है, जबकि पूर्वी जगत ने आध्यात्मिकता को अपने मूल में रखा है। पाठ में यह भी उल्लेख किया गया है कि आधुनिक युग में जड़वाद की शक्ति बढ़ रही है, जिससे मनुष्य अपनी दिव्य प्रकृति को भूलकर भौतिक वस्तुओं के पीछे भागने लगा है। लेखक का तर्क है कि केवल भौतिक संपत्ति का संग्रह करना ही वास्तविकता नहीं है; आध्यात्मिक ज्ञान और आंतरिक सुख की भी आवश्यकता है। पश्चिमी देशों की भौतिक उपलब्धियों की प्रशंसा करते हुए, लेखक ने पूर्व की आध्यात्मिकता को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया है। दोनों के बीच संतुलन आवश्यक है, ताकि मानवता की सच्ची उन्नति हो सके। इसके अलावा, भारत के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का वर्णन करते हुए, लेखक ने यह बताया है कि भारत ने कभी बाहरी आक्रमणकारियों के सामने आत्मसमर्पण नहीं किया और यहाँ का ज्ञान मानवता के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। अंत में, पाठ में यह विचार व्यक्त किया गया है कि केवल बाहरी संसार की वस्तुओं के पीछे भागना निरर्थक है; असली सुख और संतोष मन के भीतर है। इसलिए, आध्यात्मिक ज्ञान की तलाश करनी चाहिए और एक संतुलित जीवन जीना चाहिए।


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