इतिहास और आलोचना | Itihas aur Alochana
- श्रेणी: दार्शनिक, तत्त्वज्ञान और नीति | Philosophy साहित्य / Literature
- लेखक: नामवर सिंह - Namvar Singh
- पृष्ठ : 173
- साइज: 11 MB
- वर्ष: 1956
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दो शब्द :
इस पाठ में साहित्य और आलोचना के संबंध में विभिन्न विचारों की चर्चा की गई है। लेखक ने साहित्य की गहराई और व्यापकता के बीच के संबंध को समझाने का प्रयास किया है। वह यह बताते हैं कि साहित्य की गहराई को सरलता और स्पष्टता के माध्यम से समझा जा सकता है, विशेषकर जब यह सामाजिक समस्याओं को सरलता से प्रस्तुत करता है। लेखक ने यह भी कहा है कि साहित्य में गहराई को समझने के लिए यह आवश्यक है कि हम उसके सामाजिक संदर्भ से उसे अलग न करें। आलोचना में यह महत्वपूर्ण है कि समाज और साहित्य के बीच के संबंध को सही तरीके से समझा जाए। उन्होंने यह तर्क किया कि अगर साहित्य केवल व्यक्तिगत अनुभवों और भावनाओं पर आधारित है, तो वह संकुचित हो जाता है और समाज की व्यापकता से कट जाता है। विभिन्न लेखकों और उनकी रचनाओं का उल्लेख करते हुए, लेखक ने यह स्पष्ट किया कि व्यापकता और गहराई के बीच का संतुलन महत्वपूर्ण है। उन्होंने प्रेमचंद और जेनेन्द्र जैसे लेखकों का उदाहरण दिया, यह दर्शाते हुए कि कैसे व्यापकता की कमी गहराई को प्रभावित कर सकती है। अंत में, लेखक ने यह निष्कर्ष निकाला कि किसी भी साहित्यिक रचना की गहराई उस रचना की व्यापकता पर निर्भर करती है। अगर कोई रचना केवल एक छोटे से मुद्दे पर केंद्रित है और उसे व्यापक संदर्भ में नहीं देखा गया है, तो उसकी गहराई भी संदिग्ध हो सकती है। इस प्रकार, साहित्य का मूल्यांकन करते समय गहराई और व्यापकता दोनों को ध्यान में रखना आवश्यक है।
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