भाग्य- चक्र | Bhagya- Chakra
- श्रेणी: साहित्य / Literature
- लेखक: सुदर्शन - Sudarshan
- पृष्ठ : 175
- साइज: 6 MB
- वर्ष: 1940
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दो शब्द :
इस पाठ में शामलाल और शंकरदास के बीच बातचीत को प्रस्तुत किया गया है, जिसमें वे भाई साहब के संभावित अन्याय और धन के प्रति समाज के दृष्टिकोण पर चर्चा कर रहे हैं। शामलाल अपने भाई की सेवा करने का दावा करता है, लेकिन उसे अपने भाई के दान-पत्र के बारे में चिंता है, जिसमें उसकी सारी सम्पत्ति उसके बेटे के नाम की गई है। शंकरदास उसे चेतावनी देता है कि उसे अपने भविष्य की सुरक्षा के लिए सावधान रहना चाहिए। शामलाल की पत्नी लाजवन्ती भी इस बातचीत में शामिल होती है और अपने पति को प्रोत्साहित करती है कि वह अपने काम पर ध्यान दें और भगवान पर भरोसा रखें। वह शामलाल को यह समझाने की कोशिश करती है कि उनकी मेहनत का पुरस्कार केवल उनका वेतन नहीं है, और उन्हें अपने भाई पर विश्वास रखना चाहिए। शामलाल और लाजवन्ती के बीच संवाद से यह स्पष्ट होता है कि सामाजिक स्थिति और धन के प्रति लोगों का दृष्टिकोण किस प्रकार बदलता है। शंकरदास की बातें यह दिखाती हैं कि गरीबों के प्रति समाज का दृष्टिकोण कठोर होता है, जबकि अमीरों को उनके पापों के लिए माफ कर दिया जाता है। अंत में, पाठ में यह संदेश दिया गया है कि मन की संतोष और मेहनत का मूल्य आज के युग में कैसे बदल गया है।
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