प्रत्यक्ष महासमर -७ | Pratyaksh mahasamar-7
- श्रेणी: उपन्यास / Upnyas-Novel साहित्य / Literature
- लेखक: नरेन्द्र कोहली - Narendra kohli
- पृष्ठ : 451
- साइज: 17 MB
- वर्ष: 1991
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दो शब्द :
इस पाठ में द्रौपदी और अर्जुन के बीच की बातचीत का वर्णन किया गया है। द्रौपदी अर्जुन से कहती है कि वह बहुत खुश है क्योंकि उनका वनवास और अज्ञातवास समाप्त हो गया है, और उनके पुत्र अभिमन्यु का विवाह होने वाला है। अर्जुन और द्रौपदी के बीच की बातचीत में द्रौपदी अपनी चिंताओं और भावनाओं को साझा करती है, खासकर उस स्थिति पर जब वह सास बनने जा रही है। द्रौपदी यह बताती है कि वह अभी भी युवा महसूस करती है और सास की छवि उसके मन में एक वृद्धा के रूप में है। अर्जुन इस बात पर सहमति जताते हैं कि वे अपने पहले देखने के कारण एक व्यक्ति को उसी रूप में स्वीकार कर लेते हैं। अर्जुन द्रौपदी से कहते हैं कि उनके मन में पाप का विचार था, क्योंकि अभिमन्यु का विवाह होने जा रहा है जबकि उसके अन्य भाईयों का विवाह नहीं हुआ है। द्रौपदी इस बात पर विचार करती है और समझती है कि माता कुंती ने जो सोचा था वह धर्म था, और उसे अपने मन में किसी प्रकार की ईर्ष्या नहीं होनी चाहिए। बातचीत में द्रौपदी यह भी चिढ़ाती है कि यदि अभिमन्यु का विवाह हो रहा है, तो उसे भी सम्मानपूर्वक परिवार के सदस्यों को आमंत्रित करना चाहिए। भीम इस बात पर सहमत होते हैं कि उन्हें अपने संबंधियों को आमंत्रित करना चाहिए, और वे दुर्योधन को आमंत्रित करने के मामले में सजग रहते हैं। पाठ में पारिवारिक संबंधों, सास बनने के विचार, और विवाह के समय की चिंताओं को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया गया है, जो द्रौपदी और अर्जुन के बीच की गहन भावनाओं को दर्शाता है।
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