आदिकाल का हिन्दी जैन साहित्य ( ६५०-१४५० ) | Aadikal Ka Hindi Jain Sahitya( 650 - 1450)

By: हरिशंकर-शर्मा-हरीश - harishankar-sharma-harish


दो शब्द :

हरिशंकर शर्मा 'हरीश' ने अपने शोध में आदिकाल के हिंदी जैन साहित्य का अध्ययन किया है, जिसमें उन्होंने उस काल की साहित्यिक विशेषताओं और प्रवृत्तियों का विश्लेषण किया है। उन्होंने यह बताया है कि हिंदी साहित्य के आदिकाल को वीरगाथा काल के संदर्भ में समझने में कई बार निराशा हुई है, क्योंकि विद्वानों ने इस समय के साहित्य को उचित मान्यता नहीं दी। उनकी धारणा है कि वीरगाथा काल से पहले का साहित्य समृद्ध था, और यह संभव नहीं है कि इसका परवर्ती काल इतना दरिद्र हो। शर्मा ने उल्लेख किया है कि जैन साहित्य, जो मुख्यतः धार्मिक है, में भी साहित्यिक गहराई और भावनात्मकता पाई जाती है। उन्होंने उन रचनाओं का अध्ययन किया है जो जैन धर्म के संदेशों को साहित्यिक रूप में प्रस्तुत करती हैं। इसके अलावा, उन्होंने जैन कवियों की रचनाओं की प्रामाणिकता और उनके साहित्यिक मूल्य पर भी विचार किया है। आदिकाल के जैन साहित्य का अध्ययन करने के लिए उन्होंने कई पांडुलिपियों और ग्रंथों का संग्रह किया, जिसमें विभिन्न जैन मंडलों से प्राप्त सामग्री शामिल है। उनके शोध में यह भी दिखाया गया है कि जैन साहित्य ने धार्मिक प्रेरणा के साथ-साथ साहित्यिक गुणवत्ता को भी बनाए रखा है। शर्मा ने यह भी बताया कि जैन साहित्य का अध्ययन सिर्फ धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि साहित्यिक दृष्टिकोण से भी किया जाना चाहिए। उन्होंने विभिन्न शोधकर्ताओं और विद्वानों का आभार व्यक्त किया, जिन्होंने उन्हें इस कार्य में सहायता की। उनका यह कार्य आदिकाल के हिंदी जैन साहित्य को समझने और उसकी मूल्यांकन में एक महत्वपूर्ण योगदान है।


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