जैन तत्वविद्या | Jain Tattv Vidya

By: प्रमाणसागर जी महाराज - Pramansagar Ji Maharaj
जैन तत्वविद्या | Jain Tattv Vidya  by


दो शब्द :

जैन तत्त्वविद्या आचार्य माघनन्दि द्वारा रचित शास्त्रसारसमुच्चय का हिंदी विवेचन है, जिसे मुनि प्रमाणसागर ने प्रस्तुत किया है। यह ग्रंथ जैन धर्म के चार अनुयोगों का सार प्रस्तुत करता है और जैन तत्त्व दर्शन की वैज्ञानिकता को उजागर करता है। वर्तमान युग में, जहाँ शिक्षा और संस्कृति में गिरावट आ रही है, यह आवश्यक है कि युवा पीढ़ी को धर्म और दर्शन का ज्ञान दिया जाए। जैन धर्म के जीवन मूल्यों जैसे अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्त का अनुसरण कर एक नैतिक और आध्यात्मिक समाज का निर्माण किया जा सकता है। ग्रंथ के लेखक माघनन्द योगीन्द्र का काल बारहवीं सदी का है, और उनका ग्रंथ चार अनुयोगों को समाहित करता है। इसमें चार अध्याय हैं, जिनमें ज्ञान के विभिन्न पहलुओं का विवेचन किया गया है। यह ग्रंथ संक्षेप में जैनागम का समस्त ज्ञान प्रस्तुत करता है, जिससे पाठक जैन धर्म की गहराई को समझ सकते हैं। मुनि प्रमाणसागर ने इस ग्रंथ को आधुनिक संदर्भ में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, ताकि यह युवा अध्याताओं के लिए उपयोगी हो सके। ग्रंथ में चार अनुयोगों का क्रमबद्ध विवेचन किया गया है, जिसमें द्रव्यानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और प्रथमानुयोग शामिल हैं। यह ग्रंथ जैन सिद्धांतों का संक्षिप्त और स्पष्ट रूप में विवरण प्रदान करता है, जिससे पाठक को जैन धर्म की समझ में वृद्धि हो। समग्र जैनागम का सार प्रस्तुत करने वाला यह ग्रंथ एक अद्वितीय कृति है, जिसे व्यापक रूप से प्रचलित किया जाना चाहिए। मुनि प्रमाणसागर ने अपने गुरु और आचार्यों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए इस ग्रंथ को जैन तत्त्वविद्या के रूप में प्रस्तुत किया है।


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